CG News: छोटे-मोटे समझौतों के लिए तैयार नहीं
हालत ये है कि विवाह के समय जो लोग 7 जन्म साथ जीने-मरने की कसमें खा रहे हैं, उनका रिश्ता 7 महीने भी सही ढंग से नहीं चल पा रहा।
बलौदाबाजार कुंटुंब न्यायालय के आंकड़ों की मानें तो पिछले ढाई साल में यहां तलाक की 1100 से ज्यादा अर्जियां आईं। इनमें से 920 प्रकरणों पर ही सुनवाई की गई।
बाकी मामले इसलिए नहीं सुने गए क्योंकि इन जोड़ों की शादी को एक साल भी नहीं हुए थे। इनमें से ज्यादातर जोड़े तो बहुत मामूली सी बात पर जीवनभर का रिश्ता खत्म करने का मूड बना चुके थे। ऐसे में काउंसिलिंग के जरिए इनकी गृहस्थी को पटरी पर लाने की तैयारी की जा रही है। कुछ एक जोड़े दोबारा साथ रहने को राजी हुए, लेकिन बहुतेरे अब भी जीवन से जुड़े छोटे-मोटे समझौतों के लिए तैयार नहीं हैं।
लगभग 150 प्रकरणों में हो चुकी है सुलह
नतीजतन इनका गृहस्थ जीवन बर्बाद होने की कगार पर है। फिर भी काउंसलर कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह दोनों पक्षों को राजी कर परिवारों को टूटने से बचाया जा सके। वहीं, जिन 920 प्रकरणों पर कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई, उनमें से लगभग 150 प्रकरणों में सुलह हो चुकी है। बाकी बचे मामलों में भी परिवार-समाज का हित और अगर कोई पीड़ित है, तो उसका हित देखते हुए मामले निपटाए जा रहे हैं। Q. तलाक के मामले बढ़ रहे हैं। आप इसे कैसे देखती हैं?
A. महिला आयोग मेें वैवाहिक संबंधों में विवाद से जुड़े जितने मामले आते हैं, उनमें 60-70 फीसदी केस लव मैरिज हैं। असल में आजकल लोग हीरो-हीरोइन देखकर प्यार करते हैं। उन्हें लगता है कि फिल्मों की तरह उनकी लाइफ की कहानी की भी हैप्पी एंडिंग होगी। सपनों की शादी जब धरातल पर उतरती है, तो एडजस्टमेंट मांगती है। लोग इसके लिए तैयार नहीं होते। यहीं से बात बिगड़ती है। फिर जिंदगीभर तारे नजर आते हैं।
Q. फाइनेंशियल स्टेबिलिटी भी क्या इसका बड़ा कारण है?
A. हां, बिलकुल। बच्चे मां-बाप के पैसों से एक-दूसरे को गिट देते हैं। कइयों की जिंदगी बड़े होने के बाद भी ऐसे ही चल रही होती है। आगे भी ऐसे ही चलेगा, यह सोचकर शादी कर लेते हैं।
(chhattisgarh news) हर किसी को यह समझना चाहिए कि मां-बाप के पैसों से लव अफेयर नहीं होता। कई लोग शादी से पहले दिखावा करते हैं। जो हैं, जैसें हैं, रिश्ते में खुद को वैसा नहीं दिखाते। मां-बाप घर से निकालते हैं, तब दाल-आटे का भाव पता चलता है। फिर रिश्ता भी टूटता है।
Q. आज के युवा रिश्ते नहीं सहेज पा रहे! क्या सोचती हैं?
A. मां-बाप की परवरिश इसके लिए जिम्मेदार है और कहीं न कहीं पूरा समाज। संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं। परिवार के जो बुजुर्ग छोटे-मोटे झगड़े निपटा देते हैं, लोग उन्हें ही पहली फुर्सत में घर से निकालने की फिराक में रहते हैं। घर में बुजुर्ग नहीं हैं तो बच्चों को कौन सिखाएगा कि रिश्तों में सामंजस्य क्या होता है! कई बार धैर्य भी जरूरी होता है। समाज से जितना ज्यादा नैतिक मूल्यों का ह्रास होगा, उतनी ज्यादा ये समस्याएं बढ़ेंगी।