बनते-बिगड़ते रिश्तों पर देवी चंद्रकला का कहना था, आज लिव इन रिलेशनशिप और लव मैरिज का दौर है। लोगों को साथ घूमने-फिरने और खाने-पीने तक सब अच्छा लगता है। विवाह इससे अलग है। यह सामाजिक जिम्मेदारी है। आज के युवा इसे नहीं समझते। विवाह के बाद न पहले जैसा घूमना-फिरना होता है, न मिलना-जुलना। पहले जैसी उनकी कामनाएं थीं, वैसा कुछ नहीं रह जाता। यहां पर दोनों के मन में यह बात आ सकती है कि तुम पहले जैसे नहीं रहे। यही बातें परिवार में दरार डालती हैं।
लिव इन और लव मैरिज के जरिए गृहस्थी बसाने वाले ज्यादातर जोड़े यह नहीं समझ पाते कि किसी भी रिश्ते में समझौता जरूरी है। परिवार में जहां मतांतरण आ जाए, वहां तलाक के चक्कर पड़ने ही हैं। एक पक्ष कभी भी रिश्ता नहीं बचा सकता। इसके लिए दोनों को अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियां समझनी होंगी। पढ़िए देवी चंद्रकला से पत्रिका के साक्षात्कार का पूरा अंश…
बेहतर की तलाश में युवा उम्रदराज नहीं हो रहे हैं?
हां, यह देखने में आता है कि लड़की वाले गवर्नमेंट नौकरी वाले लड़के की चाह रखते हैं। इसी तरह लड़केवाले भी सुंदर बहू की तलाश में रहते हैं। इन सबके अलावा युवाओं की अपनी महत्वाकांक्षाएं भी शादी में लेटलतीफी की वजह हैं। जहां तक नौकरी का सवाल है, तो इस बात की भी क्या गारंटी कि गवर्नमेंट नौकरी वाले का भविष्य सुरक्षित है? वहीं, सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके भी लोग
सरकारी नौकरी वालों से ज्यादा कमा सकते हैं। कहने का मतलब है कि बेहतर की जगह जीवनसाथी की योग्यता परखें। यही बात लड़कों पर भी लागू होती है। चेहरे की जगह मन की सुंदरता देखेंगे, तो बेहतर जीवनसाथी का चुनाव कर पाएंगे।
शादियों में बदलते रीति-रिवाजों को आप कैसे देखती हैं?
ब्याह के गीत-संगीत या बारात में फुहड़ता गलत है। शादी कोई मनोरंजन का माध्यम नहीं है। नए जीवन की शुरुआत है। आधुनिकता के नाम पर धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं से खिलवाड़ करना सही नहीं। आचरण वही अपनाएं, जिसे अपनी मां आर बहनों के सामने भी निभा सकें। जो हरकतें आपको अपनी माता-बहनों या पिता-भाइयों के साथ शोभनीय नहीं लगती, उसे समाज के सामने भी नहीं करना चाहिए। परिवार से लेकर समाज और राष्ट्र तक, हर जगह मर्यादा सबसे ऊपर है। आधुनिकता के नाम पर धार्मिक रीति-रिवाजों को शॉर्टकट तरीके से निपटाने का भी चलन चल पड़ा है, इसे भी किसी एंगल से सही नहीं कहा जा सकता।
तामझाम से की जाने वाली खर्चीली शादी कितनी सही है?
शादियों में दिखावे के कल्चर ने लोगों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है। हालत ऐसी है कि अमूक ने अपने बच्चों की शादी इतने ठाठ से हुई थी, उससे कम तामझाम वाली शादी तो मैं भी नहीं करवाऊंगा। परिवार बेटी की खुशियों से ज्यादा यह विचार करते हुए खर्च करता है कि समाज में हमारा नंबर कहां आ रहा है!
अगर कोई संपन्न है और वह अपनी बेटी की भव्य तरीके से शादी कराता है, तो उसे इतनी दिलेरी रखनी ही चाहिए कि आसपास और भी जरूरतमंद बेटियों की उनकी शादी पर मदद करे। इसी तरह लोगों को सामर्थ्य से अधिक खर्च करने से पहले सोचना चाहिए कि ऐसा करके वे किसे प्रभावित करना चाहते हैं? क्या वास्तव में इससे उन्हें खुशी मिलेगी?
लव बनाम अरेंज मैरिज: इस पर आप क्या सोचती हैं?
लव मैरिज बुरी नहीं है, अगर पैरेंट्स राजी हैं। जिस दृष्टिकोण में मां-बाप के परिश्रम और त्याग को ठुकराकर चार दिन के प्यार को स्वीकार कर लिया जाए, वह सर्वथा अनुचित है। माता-पिता कभी बच्चे का बुरा नहीं चाहते। अगर वे आपका भविष्य सुरक्षित देखते हैं, तो शादी से इनकार नहीं करेंगे। संभव है कि समाज में कभी किसी घटना की वजह से व्यक्ति गलत रास्ते पर चला जाए। निजी कामनाओं की वजह से उथल-पुथल में भी फंसे। फिर भी व्यक्तित्व आंकलन से यह अनुमान तो लगाया ही जा सकता है कि भविष्य में कुछ अचीव करने योग्य है या नहीं! गलत फैसलों से समझकर और संभलकर भविष्य सैटल करना खुद पर निर्भर करता है।
देवी के बारे में, जानिए…
देवी चंद्रकला का जन्म 22 जुलाई 1996 को प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या में हुआ। अभी वे 28 साल की हैं। बालपन से ही परिवार में अध्यात्मिक माहौल मिला। महज 10 वर्ष की उम्र से ही प्रभु पद का संगीत गायन शुरू कर दिया था। 13 साल में राम कथा कहने लगी थीं। संस्कृत से ग्रैजुएशन के साथ प्रयाग संगीत समिति से “प्रभाकर” कर बेहतर वाक् पटुता के साथ संगीत पर भी मजबूत पकड़ बना ली। अब तक 300 से अधिक व्यासपीठ पर श्रीरामकथा का वाचन कर चुकी हैं। 200 से ज्यादा प्रभु भजन पद भी लिख चुकी हैं। अभी गरियाबंद के गांधी मैदान में रामकथा कह रहीं हैं। सोमवार को उनकी कथा का आखिरी दिन है।