सांसद राजकुमार रोत ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर लिखा कि- “भील प्रदेश” जो आदिवासी समुदाय के अस्तित्व और पहचान को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है। भीलप्रदेश की माँग आजादी के पहले से ही उठती आई है, क्योंकि यहाँ के लोगों की संस्कृति, भाषा, बोली और रीति रिवाज दूसरे प्रदेशों से अलग है और आदिवासी संस्कृति और सभ्यता को बचाने और उसके सरंक्षण के लिए जरूरी है।
उन्होंने आगे लिखा कि ‘भील राज्य की मांग को लेकर गोविंद गुरु के नेतृत्व में 1913 में 1500 से अधिक आदिवासी मानगढ़ पर शहीद हुए थे। आजादी के बाद भील प्रदेश को चार राज्य में बांटकर इस क्षेत्र की जनता के साथ अन्याय किया। गोविंद गुरु के नेतृत्व में शहीद हुए 1500 से अधिक शहीदों के सम्मान में भील प्रदेश राज्य बनाना है।’
भीलप्रदेश की मांग भील समुदाय की सांस्कृतिक पहचान, स्वायत्तता और विकास के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। रोत ने इसे संसद से लेकर केंद्रीय नेताओं तक के समक्ष भी रखा है। भील प्रदेश के प्रस्ताव में चार राज्यों के 49 जिलों को शामिल करने की बात कही गई है।
राजस्थान– डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, प्रतापगढ़, सिरोही, जालौर, बाड़मेर, पाली, चित्तौड़गढ़, कोटा और बारां जिले के हिस्से। मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र– इन राज्यों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों के लगभग 20 पूर्ण जिले और 19 अन्य जिलों के हिस्से।
कब-कब उठी मांग?
1913: भील समुदाय की यह मांग सबसे पहले भील समाज सुधारक गोविंद गुरु ने मानगढ़ नरसंहार के बाद उठाई थी, जिसे “आदिवासी जलियांवाला” के रूप में भी जाना जाता है। 2024 (लोकसभा चुनाव): राजकुमार रोत ने चुनाव प्रचार के दौरान इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। जीत के बाद उन्होंने इसे संसद में ले जाने का वादा किया। जून 2024: राजस्थान विधानसभा में BAP विधायकों उमेश मीणा और थावरचंद डामोर ने भील प्रदेश की मांग को टी-शर्ट पहनकर समर्थन दिया, हालांकि भजनलाल सरकार ने इसे खारिज कर दिया। दिसंबर 2024: राजकुमार रोत ने लोकसभा में नियम 377 के तहत चर्चा की मांग की और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की।
जनवरी 2025: बांसवाड़ा में आदिवासी रैली में रोत ने क्षेत्रीय आरक्षण और भील प्रदेश की मांग को दोहराया।
भीलप्रदेश की मांग क्यों?
भील प्रदेश की मांग उठाने वालों का मानना है कि आदिवासियों के विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, और पेयजल-सिंचाई जैसी समस्याओं का समाधान होगा। साथ ही पांचवीं और छठी अनुसूची लागू करने की मांग भी शामिल है। हालांकि राजस्थान सरकार ने इसे खारिज करते हुए कहा कि जातिगत आधार पर राज्य गठन संभव नहीं। फिर भी सांसद रोत इस मुद्दे को उठाते रहे है।