बता दें कि इब्राहिम खान ने विद्यालय में पहली कक्षा के सभी विद्यार्थियों को स्कूली बैग, मदरसे में पानी की प्याऊ, टंकी और दरी-पट्टियां भेंट की। शिक्षक इब्राहिम खान ने बताया कि उनकी मां आसियत अक्सर कहा करती थीं कि मृत्यु के बाद उनके नाम पर भोज न किया जाए और संभव हो तो सेवा कार्य के लिए दान-पुण्य कर लिया जाए।
सामाजिक कुरीतियों को मिटाने का प्रयास
इब्राहिम खान ने बताया कि वे पिछले दस वर्षों से मुस्लिम समाज सहित अन्य समुदायों में सामाजिक कुरीतियों को मिटाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी कारण वे पिछले दस सालों से किसी भी परिवार में मृत्यु भोज में बनने वाला खाना नहीं खाते। मृत्यु भोज बंद करने को लेकर कई सामाजिक आयोजनों में उन्हें सम्मानित भी किया गया है।
लाखों रुपए होते हैं खर्च
उन्होंने बताया कि मृत्यु भोज में लाखों रुपए खर्च करने की होड़ में कई परिवार कर्जदार तक हो जाते हैं। इस कुरीति से मुक्ति के लिए उन्होंने अपने परिवार से शुरुआत कर समाज को संदेश देने का प्रयास किया है।
इस दौरान पूर्व सरपंच साबू खान दूधिया, पेमाराम, ओसमान खान, एलियास खान, सुभान गुलवानी सहित दर्जनों लोगों ने इस कार्य की सराहना की और इसे अपने परिवारों में भी अपनाने की बात कही।