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बाड़मेर

दिव्यांग लीला ने पैरों से मदन दिलावर को लिखा भावुक पत्र, ट्रांसफर की लगाई गुहार; 300 KM दूर मिला ट्रेनिंग सेंटर

दिव्यांग लीला ने पैरों से शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर ट्रांसफर की गुहार लगाई है।

बाड़मेरJul 15, 2025 / 03:11 pm

Lokendra Sainger

handicapped student

Photo- Patrika Network

जिन हाथों से बच्चे अपने सपनों को आकार देते हैं, उन्हीं हाथों के बिना एक बच्ची अपने सपनों को पैरों से लिख रही है। एक लड़की, जिसने एक दर्दनाक हादसे में दोनों हाथ गंवा दिए, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। वह अपने पैरों से न केवल लिखती है, बल्कि भविष्य के सपने को पूरा करने के लिए शिक्षक बनने की राह पर चल पड़ी है। लेकिन विडंबना यह है कि उसे प्रशिक्षण लेने के लिए जो सेंटर आवंटित हुआ है, वह बाड़मेर से करीब 300 किलोमीटर से ज्यादा दूर है।
इसी बाधा को दूर करने के लिए उसने पैरों से शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर गुहार लगाई है कि उसका ट्रांसफर बाड़मेर कर दिया जाए। बच्ची अपने आप एक मक्खी तक नहीं उड़ा सकती, पूरी तरह परिजन पर निर्भर है, ऐसी बच्ची 300 से ज्यादा किलोमीटर दूर अकेली कैसे पढ़ने जाएगी। लीला कुंवर का चयन प्रारंभिक शिक्षक प्रशिक्षण (एसटीसी) के लिए हुआ है। लेकिन नियमानुसार उसे जो प्रशिक्षण विद्यालय आवंटित हुआ है, वह जोधपुर जिले के बोरुंदा स्थित एक आवासीय संस्थान है।

लीला ने मंत्री को लिखा भावुक पत्र

लीला कुंवर शारीरिक रूप से पूर्णतः दिव्यांग है। बिजली के करंट से उसके दोनों हाथ कोहनी के ऊपर से काटने पड़े थे। इन परिस्थितियों में उसने राजस्थान के शिक्षा मंत्री को अपने पैरों से खुद पत्र लिखकर गुहार लगाई है। पत्र में लिखा है कि उसे बाड़मेर की डाइट (शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान) में स्थानांतरित कर दिया जाए। पत्र में उसने लिखा है- दोनों हथेलियां नहीं हैं, पांवों से लिखना सीखा है, कृपया मेरा ट्रांसफर बाड़मेर कर दीजिए, ताकि मैं शिक्षक बनने का सपना पूरा कर सकूं।
पत्रिका व्यू: आखिर नियम तो जनता के लिए ही बने हैं ऐसे मामलों में सवाल नियम-कायदों का नहीं, इंसानियत का होता है। जब किसी ने अपने संघर्ष से समाज को प्रेरणा देने की मिसाल पेश की हो, तो उसका साथ देना सरकार, शासन और समाज सबकी जिम्मेदारी बनती है। यदि कोई बच्ची दिव्यांग होने के बावजूद पढ़ाई की जिद नहीं छोड़ती, तो क्या सरकार को उसके लिए रास्ता नहीं बनाना चाहिए? सरकार से अपेक्षा है कि लीला कुंवर जैसी दिव्यांग बच्चियों के लिए नियमों में आवश्यक लचीलापन दिखाए। ताकि उनकी आंखों में पल रहे सपने पूरे हो सकें।

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