जानिए कैसे देगी जल्दी भारत सरकार राजस्थानी भाषा को मान्यता
राजस्थानी को आठवीं अनुसूचि में शामिल करने के लिए अब तक यह द्वन्द्व रहा कि बोलियां अलग-अलग है। एक सुदृढ़़ शब्दकोष नहीं है। राजस्थानी भाषा कौनसी चुनी जाए…आदि-आदि। वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है। किसी भी भाषा को आठवीं अनूसूचि में शामिल करने के लिए कोई निश्चित मानदण्ड नहीं है। केवल भारत सरकार को भावना और भावनाएं और अन्य प्रासंगिक बातों पर ही विचार करना है।
बाड़मेर
राजस्थानी को आठवीं अनुसूचि में शामिल करने के लिए अब तक यह द्वन्द्व रहा कि बोलियां अलग-अलग है। एक सुदृढ़़ शब्दकोष नहीं है। राजस्थानी भाषा कौनसी चुनी जाए…आदि-आदि। वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है। किसी भी भाषा को आठवीं अनूसूचि में शामिल करने के लिए कोई निश्चित मानदण्ड नहीं है। केवल भारत सरकार को भावना और भावनाएं और अन्य प्रासंगिक बातों पर ही विचार करना है। इसलिए, राजस्थानी में कहावत है बोले उणरा बूंबळा बिके..केवल सभी राजस्थानी भावनाएं तरीके से पहुंचा दे तो काम हो सकता है। राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूचि में शामिल करने को लेकर लोकसभा में दो सांसदों ने माला उठाया जिसका जवाब यही आया है।
यह थे सवाल
- क्या सरकार का आठवीं अनुसूची में और अधिक भाषााओं को शामिल करने का कोई प्रस्ताव है। यदि हां तो ब्यौरा दें
-क्या सरकार का गोरबेली और राजस्थानी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का कोई प्रस्ताव है - यदि हां तो ब्यौरा दे, नहीं तो कारण बताएं
यह आया है जवाब
गोरबोली और राजस्थानी सहित समय-समय पर संविधान की आठवीं अनुसूची में कई भाषाओं को शामिल करने की मांग उठती रहती है। हालांकि किसी भी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने पर विचार किए जाने के लिए कोई कोई निश्चित मानदंड नहीं है, चंूिक बोलियों और भाषाओं का विकास एक गतिशील प्रक्रिया है, जो सामािजक-सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास से प्रभािवत होती है,इसलिए भाषाओं के लिए ऐसा कोई मानदंड निर्धारित करना मुश्किल है,जिससे उन्हें संविधान की आठवींं अनुसूची में शामिल किया जा सके । पाहवा समिति (1996) और सीताकांत महापात्रा समिति (2003) के
माध्यम से इस तरह के निश्चित मानदंड विकिसत करने के पूर्वगामी प्रयास अनिर्णायक रहे है। भारत सरकार आठवीं अनुसूची में अन्य भाषाओं को शािमल करने से संबंिधत भावनाओं और आवश्यकताओ ं के प्रति सचेत है। इस तरह के अनुरोधों पर इन भावनाओं और अन्य प्रासंगिक बातों को ध्यान में रखते हुए विचार करना होता है।(जैसा कि बलराम नाइक और महिमा कुमारी मेवाड़ के लोकसभा के प्रश्न का जवाब गृहराज्यमंत्री नित्यानंद राय ने दिया)
वर्तमान में आठवीं अनुसूचि में 22 भाषाएं
असमी, बंगाली, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उडिय़ा, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलगु, ऊर्दू, बोड़ो, संथाली, मैथिली और डोगरी
राजनीति ही बड़ा कारण
राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं करने का एकमात्र कारण राजनीति है और कुछ नहीं ।- मानवेन्द्रङ्क्षसह, पूर्व सांसद
हर राजस्थानी की भावना
मैने विधानसभा में राजस्थानी में शपथ लेने के लिए अर्जी दी थी, लेकिन नहीं मानी गई। फिर भी मैने एक बार शपथ बोल दी, जो रिकार्ड में नहीं है। सात करोड़ राजस्थानियों की यह भावना है कि राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए। भारत सरकार भावना को मानती है तो यह तो प्रत्येक राजस्थानी की है।- रविन्द्रङ्क्षसह भाटी, विधायक शिव
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