भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को राजस्थान के डीग जिले के गांव बहज में 3500 से 1000 ईसा पूर्व पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं। यहीं 23 मीटर की गहराई पर एक प्राचीन नदी तंत्र (पैलियो चैनल) भी दिख रहा है। पुरातत्व शोधार्थी इसे ऋग्वेद में वर्णित सरस्वती नदी से जोड़कर देख रहे हैं।
दावा है कि यह प्राचीन जल प्रणाली सरस्वती नदी के किनारे पनपी सभ्यता की नींव हो सकती है। मथुरा से पचास किलोमीटर दूर स्थित यह स्थल सरस्वती बेसिन की सांस्कृतिक विरासत को जोड़ने वाली कड़ी है। पांच माह तक चली खुदाई में हिंदु देवी-देवताओं की मूर्ति के अलावा प्राचीन सभ्यता के आभूषण भी मिले हैं।
करीब 4 मीटर गहराई पर एक महिला का कंकाल और चांदी, तांबे के प्राचीन सिक्के भी बड़ी संख्या में मिले हैं। गोवर्धन सड़क मार्ग स्थित जिले के इस गांव में भगवान श्रीकृष्ण पौत्र बज्रनाथ का खेड़ा होने की जानकारी पर एएसआइ ने पिछले वर्ष 10 जनवरी को खुदाई शुरू की थी। अवशेषों पर शोध किया गया है।
महाभारत काल के बर्तनों का मिला भंडार
हड्डी से बने औजार, अर्ध-कीमती पत्थरों के मनके और शंख की चूड़ियां, 15 यज्ञ कुंड, शिव-पार्वती की मूर्तियां मिली हैं। इनकी आयु 1000 ईसा पूर्व से भी अधिक बताई जा रही है। ब्राह्मी लिपी की मुहरें, महाजनपद काल के यज्ञ कुंडों में रेत भरी मिट्टी और छोटे बर्तनों में तांबे के सिक्के। महाभारत काल के बर्तनों का भंडार मिला है। टीले के नीचे दीवारें मिलीं हैं।
जैन अभिलेखों में बहज गांव का जिक्रवज नगर के रूप में है। यहां टीलों का जिक्र भी कंकाली टीलों के रूप में मिलता है। वज नगरी से इसके नाम का बहज तद्भव हो गया। गांव के प्राचीन टीले का अधिकतर भाग आबादी में जा रहा है। यह बृज चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग में आता है।