इन तरीकों से भरती हैं परिवहन में अफसर-नेताओं की जेब
1. चेक पोस्ट
2. यात्री वाहन परमिट
यात्री वाहन परमिट प्रदेश में 20 हजार यात्री वाहनों को ग्रामीण परिवहन सेवा के तहत परमिट होता हैं। इसमें भी बड़ा खेल होता है। निर्धारित आयु सीमा पूरी कर लेने वाली बसों को भी मोटी रकम लेकर परमिट दे दिया जाता है। कई स्थानों पर तो एक ही परमिट पर दो-दो बसें चल रही हैं। बसों की चेकिंग न करने के नाम पर भी वाहन मालिक हर महीने परिवहन विभाग के अफसरों को पैसा देते हैं। इसी तरह पैसा देकर फिटनेस और अन्य पैरामीटर की फर्जी रिपोर्ट बनवा ली जाती है।3. अन्य वाहनों
से परिवहन विभाग के दायरे में मालवाहक और यात्री वाहनों के साथ ही अर्थमूवर, पर्यटक वाहन, ग्रामीण परिवहन सेवा की बसें और चार्टर्ड बसें भी आती हैं। बड़े ट्रांसपोर्टर्स से एकमुश्त वसूली होती ही है, अर्थमूवर और पर्यटक वाहनों से अलग वसूली होती है। नियमानुसार चार्ज ज्यादा होता है, इसलिए बिना रसीद निकालने के नाम पर वसूली होती है। कृषि यंत्रों से जुड़े वाहनों का भी अंतरराज्यीय परिवहन होता है, जिनसे भी मनमानी वसूली की जाती है।4. उड़नदस्तों से
परिवहन नियमों की अनदेखी पर उडऩदस्ते वाहनों से जुर्माना वसूलते हंै। जिलों के साथ राज्य स्तरीय उडऩदस्ता भी है। यह विभाग की घोषित और अघोषित आमदनी का बड़ा जरिया है। मापदंड के उल्लंघन पर चालान बनाकर जुर्माना वसूला जाता है, या बिना रसीद काटे वसूली की जाती है।5. कार्यों के टेंडर
परिवहन विभाग में कई काम ऑनलाइन होने लगे हैं। ड्राइविंग लाइसेंस, परमिट, वाहन रजिस्ट्रेशन कार्ड के लिए विभाग टेंडर जारी करता है। इनके अनुबंध करने वाली कंपनियों से मोटी रकम रिश्वत के तौर पर ली जाती है। बस स्टैंड, प्रतीक्षालय आदि के लिए टेंडर में भी अफसरों की ऊपरी कमाई होती है।यह है चेन…. ठेकेदार, दलाल, अफसर और नेता
परिवहन विभाग में पैसे की उगाही और बंटवारे की कार्यप्रणाली जानने के लिए रिटायर्ड अफसरों, ठेकेदारों और दलालों से बातचीत में पता चला कि सब कुछ सिस्टेमेटिक है। मैदानी अमला वसूली करता है तो पूरा हिसाब ऊपर तक पहुंचता है। रकम का बंटवारा भी तेजी से होता है। ठेकेदार दलाल तक और दलाल अफसरों तक पैसा पहुंचाता है। अफसर इसे नेताओं तक पहुंचाते हैं। ऊपरी कमाई खपाने के रास्ते भी दलाल ही बताते हैं। ये दलाल नजदीकी बनकर विश्वास हासिल करते हैं और उनके बताए अनुसार रकम का निवेश करते हैं।ठेकेदार –
ये पूरी तरह अशासकीय व्यक्ति होते हैं। परिवहन नाकों के घोषित-अघोषित ठेके लेते हैं। दो दशक से ग्वालियर-चंबल के बाहुबलियों का वर्चस्व है। नाकों पर गुंडों की फौज रहती है, जिनके दम पर वसूली होती है। रोज का हिसाब ठेकेदार के पास पहुंचता है। वह कर्मचारियों का वेतन काटकर रकम दलाल को देते हैं।दलाल –
कुछ अशासकीय और कुछ शासकीय व्यक्ति दलाली करते हैं। ठेकेदारों से मिलने वाली रकम को परिवहन अफसरों तक पहुंचाते हैं। कुछ जिलों में जिला परिवहन अधिकारी को रकम दी जाती है, कुछ जिलों में सीधे राज्य स्तरीय अफसरों तक। कुछ अफसर रिश्तेदारों के मार्फत रकम लेते हैं।अफसर –
परिवहन विभाग के अधिकारी ही तय करते हैं कि कितनी राशि कहां जाएगी। विभाग के मंत्री, राजनीतिक दलों, मुखबिरों और सौजन्यकर्ताओं तक यह राशि पहुंचाई जाती है। सौरभ के मामले में भी ऐसी 66 पेज की हरी डायरी मिली है, जिसमें जी और यू वीआइपी श्रेणी में दर्ज हैं।सौरभ शर्मा मामले पर पूर्व मंत्री ने भाजपा को घेरा, बोले- पकड़े जाएं शेर-बब्बर शेर और टाइगर
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