scriptपत्रिका पड़ताल में बड़ा खुलासा, इन 5 तरीकों से भरती हैं RTO अफसरों और नेताओं की जेब | BIG disclosure in saurabh Sahrma Case in Patrika Investigation RTO Black Money distributed in RTO Officers and Leaders | Patrika News
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पत्रिका पड़ताल में बड़ा खुलासा, इन 5 तरीकों से भरती हैं RTO अफसरों और नेताओं की जेब

Saurabh Sharma Case: सौरभ शर्मा के मामले से चर्चा में परिवहन विभाग की काली कमाई का बड़ा खुलासा, पत्रिका की पड़ताल में खुले राज, कैसे कमाते हैं RTO अफसर और नेता…

भोपालJan 04, 2025 / 01:14 pm

Sanjana Kumar

Saurabh Sharma Case
Saurabh Sharma Case: भगवान उपाध्याय. मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार में सबसे अव्वल परिवहन विभाग का नाम आता है। प्रदेश में सड़कों पर दौड़ रहे एक करोड़ से ज्यादा वाहनों से इस विभाग का सीधा रिश्ता है। अन्य राज्यों से मप्र सीमा में आने वाले वाहन भी इस रिश्ते से जुड़ जाते हैं। परिवहन विभाग में रिश्वत और अवैध वसूली का खेल खुले अंदाज में चलता है।
सिर्फ चेकपोस्ट ही नहीं, यहां से जुड़े ऐसे अनेक काम हैं, जिनसे परिवहन विभाग का अमला और दलाल मिलकर काली कमाई के महल खड़े कर रहे हैं। प्रदेश में सबसे ज्यादा काली कमाई के मामले परिवहन विभाग में ही उजागर हुए। पत्रिका ने जानने की कोशिश की कि आखिरकार परिवहन विभाग में इतना पैसा कहां से आता है, कैसे आता है और कहां जाता है।

इन तरीकों से भरती हैं परिवहन में अफसर-नेताओं की जेब

1. चेक पोस्ट

चेक पोस्ट कुछ समय पहले तक परिवहन विभाग की 40 चेक पोस्ट थी। यहां सभी वाहनों से टैस लिया जाता था। अब चेक पोस्ट खत्म कर दिए, पर कई जगह मालवाहक वाहनों से वसूली जारी है। चेक पोस्ट पर सबसे ज्यादा कमाई इन्हीं से होती हैं। तौलकांटे और परमिट की आड़ में भारी जुर्माना बता सौदेबाजी कर वाहन निकाल दिया जाता है। यह रकम ठेकेदारों और दलालों के जरिए आगे पहुंचती है।

2. यात्री वाहन परमिट

यात्री वाहन परमिट प्रदेश में 20 हजार यात्री वाहनों को ग्रामीण परिवहन सेवा के तहत परमिट होता हैं। इसमें भी बड़ा खेल होता है। निर्धारित आयु सीमा पूरी कर लेने वाली बसों को भी मोटी रकम लेकर परमिट दे दिया जाता है। कई स्थानों पर तो एक ही परमिट पर दो-दो बसें चल रही हैं। बसों की चेकिंग न करने के नाम पर भी वाहन मालिक हर महीने परिवहन विभाग के अफसरों को पैसा देते हैं। इसी तरह पैसा देकर फिटनेस और अन्य पैरामीटर की फर्जी रिपोर्ट बनवा ली जाती है।

3. अन्य वाहनों

से परिवहन विभाग के दायरे में मालवाहक और यात्री वाहनों के साथ ही अर्थमूवर, पर्यटक वाहन, ग्रामीण परिवहन सेवा की बसें और चार्टर्ड बसें भी आती हैं। बड़े ट्रांसपोर्टर्स से एकमुश्त वसूली होती ही है, अर्थमूवर और पर्यटक वाहनों से अलग वसूली होती है। नियमानुसार चार्ज ज्यादा होता है, इसलिए बिना रसीद निकालने के नाम पर वसूली होती है। कृषि यंत्रों से जुड़े वाहनों का भी अंतरराज्यीय परिवहन होता है, जिनसे भी मनमानी वसूली की जाती है।

4. उड़नदस्तों से

परिवहन नियमों की अनदेखी पर उडऩदस्ते वाहनों से जुर्माना वसूलते हंै। जिलों के साथ राज्य स्तरीय उडऩदस्ता भी है। यह विभाग की घोषित और अघोषित आमदनी का बड़ा जरिया है। मापदंड के उल्लंघन पर चालान बनाकर जुर्माना वसूला जाता है, या बिना रसीद काटे वसूली की जाती है।

5. कार्यों के टेंडर

परिवहन विभाग में कई काम ऑनलाइन होने लगे हैं। ड्राइविंग लाइसेंस, परमिट, वाहन रजिस्ट्रेशन कार्ड के लिए विभाग टेंडर जारी करता है। इनके अनुबंध करने वाली कंपनियों से मोटी रकम रिश्वत के तौर पर ली जाती है। बस स्टैंड, प्रतीक्षालय आदि के लिए टेंडर में भी अफसरों की ऊपरी कमाई होती है।
कमलनाथ ने पत्रिका की खबर शेयर कर किया ट्वीट

यह है चेन…. ठेकेदार, दलाल, अफसर और नेता

परिवहन विभाग में पैसे की उगाही और बंटवारे की कार्यप्रणाली जानने के लिए रिटायर्ड अफसरों, ठेकेदारों और दलालों से बातचीत में पता चला कि सब कुछ सिस्टेमेटिक है। मैदानी अमला वसूली करता है तो पूरा हिसाब ऊपर तक पहुंचता है। रकम का बंटवारा भी तेजी से होता है। ठेकेदार दलाल तक और दलाल अफसरों तक पैसा पहुंचाता है। अफसर इसे नेताओं तक पहुंचाते हैं। ऊपरी कमाई खपाने के रास्ते भी दलाल ही बताते हैं। ये दलाल नजदीकी बनकर विश्वास हासिल करते हैं और उनके बताए अनुसार रकम का निवेश करते हैं।

ठेकेदार –

ये पूरी तरह अशासकीय व्यक्ति होते हैं। परिवहन नाकों के घोषित-अघोषित ठेके लेते हैं। दो दशक से ग्वालियर-चंबल के बाहुबलियों का वर्चस्व है। नाकों पर गुंडों की फौज रहती है, जिनके दम पर वसूली होती है। रोज का हिसाब ठेकेदार के पास पहुंचता है। वह कर्मचारियों का वेतन काटकर रकम दलाल को देते हैं।

दलाल –

कुछ अशासकीय और कुछ शासकीय व्यक्ति दलाली करते हैं। ठेकेदारों से मिलने वाली रकम को परिवहन अफसरों तक पहुंचाते हैं। कुछ जिलों में जिला परिवहन अधिकारी को रकम दी जाती है, कुछ जिलों में सीधे राज्य स्तरीय अफसरों तक। कुछ अफसर रिश्तेदारों के मार्फत रकम लेते हैं।

अफसर –

परिवहन विभाग के अधिकारी ही तय करते हैं कि कितनी राशि कहां जाएगी। विभाग के मंत्री, राजनीतिक दलों, मुखबिरों और सौजन्यकर्ताओं तक यह राशि पहुंचाई जाती है। सौरभ के मामले में भी ऐसी 66 पेज की हरी डायरी मिली है, जिसमें जी और यू वीआइपी श्रेणी में दर्ज हैं।



नेता –

परिवहन विभाग से मिलने वाली रकम सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के साथ विपक्ष तक पहुंचती है। संगठन के कुछ ऊपरी खर्चे भी इसी से चलते हैं। इस मामले में सारा रेकार्ड अफसर अपने पास भी रखते हैं। पूर्व में छापों के दौरान मिली डायरियों और कागजों में ऐसी रकम की जानकारी मिल चुकी है।

गोपनीय सेवा व्यय बजट में

परिवहन विभाग में घोषित तौर पर गोपनीय सेवा व्यय के नाम पर बजट में राशि का प्रावधान किया जाता है। वर्ष 2024-25 के बजट में इसके लिए 75 हजार रुपए का प्रावधान किया गया है। जबकि पिछले साल बजट में मात्र 25 हजार रुपए का प्रावधान किया गया था।

10 हजार करोड़ का लक्ष्य

व र्ष 2015 में परिवहन विभाग ने दस साल की कार्ययोजना बनाई, जिससे 2025-26 में राजस्व लक्ष्य 10,000 करोड़ तय हुआ। उस समय विभाग की सालाना आमदनी 1875 करोड़ थी। यह 2004-05 से 1421 करोड़ ज्यादा थी। इस साल आय 10,000 करोड़ पहुंचेगी या नहीं, यह तो तय नहीं है पर सौरभ शर्मा के खुलासों से पता चलता है कि विभाग की आड़ में कितनी हेराफेरी हो रही है।

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