जांच के नाम पर कागजी घोड़े : पुलिस ने 7 मार्च 1997 को बयान लिया। एक अन्य बयान 15 फरवरी 2010 को लिया। जांच के आदेश के कोर्ट ने लिखा- पुलिस ने जांच न कर कागजी घोड़े दौड़ाए।
सीएम हाउस में दी सूचना
पुलिस कथन में पाया कि जलने की सूचना सीएम हाउस में दी। निर्देश पर डॉ. योगीराज शर्मा मौके पर गए। उन्होंने माना घटना(Sarla Mishra Murder Case) वाला कमरा धुला था। साक्ष्यों से छेड़छाड़ की आशंका है। राजीव दुबे-योगीराज ने ढाई घंटे तक पुलिस को नहीं बताया, इलाज के प्रयास नहीं किए।जांच पर सवाल
पुलिस जांच पर सवाल उठाए। तब कहा सरला ने फोन कर सूचना दी। कोई जलता हुआ लैंडलाइन फोन से नंबर कैसे डायल करेगा। पुलिस ने वैज्ञानिक जांच नहीं की। टेलीफोन नहीं जब्त किया, न एफएसएल को भेजा। जला टेलीफोन भी नहीं मिला।रिपोर्ट में विरोधाभास
- सरला (Sarla Mishra Murder Case)को जब 15 फरवरी 1997 को सुबह 1.30 बजे राजीव दुबे हमीदिया ले गए तब ड्यूटी डॉ. अनूप दुबे के मेमो में लिखा कि शरीर पूरी तरह जला है। बोलने की स्थिति नहीं है, डिटेल रिकार्ड नहीं किए। मिश्रा की नई दिल्ली सफदरजंग अस्पताल में 19 फरवरी 1997 की मृत्यु समीक्षा रिपोर्ट में बताया कि 90% डीपबर्न था। मरणासन्न बयान संदेह पैदा करते हैं। 90% से अधिक डीपबर्न में कोई हस्ताक्षर नहीं कर सकती।
- जांच अधिकारी ने सरला के माता पिता को घटना की सूचना देने का प्रयास नहीं किया। बयान भी नहीं लिए। पिता अश्विनी मिश्रा ने राजीव दुबे से चाबी लेकर सरला का घर खोला तो संघर्ष की स्थिति दिखी।
- घटनास्थल पर बोतल जब्त होना बताया। कोई वस्तु से फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए और न ही पोस्टमार्टम के समय विसरा का नमूना लिया और न ही सुरक्षित रखा गया।