इन सबके बावजूद मध्यप्रदेश के वन अफसर बिना सुनवाई के कार्रवाई कर रहे हैं। इसके दायरे में असल अतिक्रमण माफिया के अलावा ज्यादातर वे लोग आ रहे हैं, जिनकी निजी जमीन वर्षों पहले वन खंडों में शामिल कर ली थी और अब तक वापस नहीं लौटाई गई।
वनाधिकार पट्टा भी निरस्त कर दो
अतिक्रमण हटाने की नियम विरुद्ध कार्रवाई के पीछे पीसीसीएफ स्तर के एक अधिकारी का जोर बताया जा रहा है। उन्हें सीएम की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद फटकार पड़ चुकी है। सूत्रों के मुताबिक, अफसर ने वाट्सऐप ग्रुप पर अधीनस्थों को अतिक्रमण से जुड़े एक मामले में फरमान दिया कि यदि संबंधित के खिलाफ वनाधिकार पट्टा है तब भी पट्टा निरस्तीकरण का प्रकरण भेजें। हालांकि फटकार के बाद उक्त अधिकारी ने मैसेज डिलीट कर दिया। (forest land eviction) नियम विरुद्ध कार्रवाई
हाल के दिनों में वन विभाग के अफसर डिंडौरी में भी इस तरह की कार्रवाई कर सुर्खियों में आए। शिकायतें भी हुई। बैतूल जिले की भौंरा रेंज में संबंधितों ने आरोप लगाया कि बिना किसी पूर्व सूचना या सुनवाई के अतिक्रमण हटाया गया । बैतूल से भाजपा विधायक हेमंत खंडेलवाल ने कार्रवाई पर आपत्ति ली थी। सूत्रों के मुताबिक सीएम से भी शिकायत की। (forest land eviction)
नाराज हुए केंद्रीय मंत्री
सीहोर के बुधनी रेंज में वन विभाग के अफसरों ने कुछ किसानों की जमीन को वन भूमि मानकर उन्हें बेदखल करने के प्रयास किए। यह मामला केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान तक पहुंचा। जिस पर वह नाराज हो गए। सूत्रों की मुताबिक, उन्होंने यह विषय सीएम डॉ. मोहन यादव के संज्ञान में लाया। जिसके बाद वन विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक बर्णवाल को निर्देश दिए गए कि पूरे मामले की ठीक से जांच की जाए, अभी जांच चल रही है। मामला बीते सप्ताह का है। (forest land eviction) ये है नियम
- अतिक्रमण हटाने से पहले भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 26 या धारा 33 के तहत वन अपराध दर्ज करना होता है।
- यदि ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित ने अतिक्रमण किया है तो उसे भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 30-ए का नोटिस देना होता है।
- पर्याप्त सुनवाई के अवसर दिए जाने के बाद धारा 30-ए के तहत डीएफओ द्वारा संबंधित को बेदखली का आदेश देते हैं।
- इन सभी वैधानिक प्रक्रियाओं के पालन के बावजूद यदि संबंधित। द्वारा अतिक्रमण नहीं हटाया जाता है, तब की स्थिति में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जाती है। (forest land eviction)