इस मामले में विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, रजिस्ट्रार और पूर्व वित्त नियंत्रक, ऋषिकेश वर्मा सहित अन्य अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया था। मार्च 2023 में कोषागार एवं लेखा विभाग की जांच समिति ने इस घोटाले का खुलासा किया था, लेकिन तत्कालीन वित्त नियंत्रक वर्मा को 31 अक्टूबर 2023 को सेवानिवृत्त होने की अनुमति दे दी गई, वर्मा ने कोर्ट में सरेंडर किया था, लेकिन सख्त पूछताछ न होने के कारण आर्थिक अनियमित्ता और गायब हुई राशि की जानकारी नहीं मिल सकी है।
फॉरेंसिक ऑडिट के फायदे
धोखाधड़ी का पता लगाना- यह ऑडिट वित्तीय धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार को उजागर करने में मदद करता है। जवाबदेही सुनिश्चित करना- फॉरेंसिक ऑडिट के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए। सुधार की दिशा में कदम- इस प्रक्रिया से संस्थान को अपनी वित्तीय प्रणाली में सुधार करने की दिशा में मदद मिल सकती है।
11 लोगों ने किया ऑडिट के लिए आवेदन
फॉरेंसिक ऑडिट के लिए रेंडम प्रक्रिया के तहत आवेदन मांगे थे। 11 लोगों ने ऑडिट के लिए आवेदन किया है और इनकी स्क्रूटनी के बाद किसी एक विशेषज्ञ को काम सौंपा जाएगा। इस प्रक्रिया के बाद, विश्वविद्यालय को यह स्पष्ट हो सकेगा कि घोटाले में कुल कितनी राशि शामिल थी और वह राशि कहां और कैसे गायब हुई।
फॉरेंसिक ऑडिट इसलिए ताकि अनियमितता का पूरा खुलासा हो सके
इस संबंध में लगातार नई जानकारी मिल रही है, लेकिन कुछ खाते या रकम का कोई पता नहीं चल रहा। विश्वविद्यालय अब फॉरेंसिक ऑडिट कराएगा, ताकि इस अनियमितता का पूरा खुलासा हो सके। इसके लिए 11 लोगों ने आवेदन किया है। – डॉ. मोहन सेन, रजिस्ट्रार, आरजीपीवी