एक अध्ययन के अनुसार, गर्भावस्था में तनाव लेने वाली महिलाओं में गर्भपात का खतरा 42 प्रतिशत बढ़ जाता है। मनोचिकित्सकों ने बताया कि,
मध्य प्रदेश में लगभग 60 लाख से अधिक मनोरोगी हैं। इसका 15 से 20 प्रतिशत पर्सनालिटी डिसऑर्डर से पीड़ित हैं और इनमें से आधे से ज्यादा तो सिर्फ
भोपाल में ही हैं।
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विशेषज्ञों के अनुसार, तनाव से नवजात की मस्तिष्क स्थिति ऐसी हो जाती है कि, उसे ध्यान केंद्रित करने और सीखने में समस्या पैदा होती है। संज्ञानात्मक क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है साथ ही समय से पहले जन्म, कम वजन वाला बच्चा पैदा होना और अन्य जटिलताओं का खतरा बढ़ सकता है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
इसके रोगी जरूरत से जयादा चिंतित, भावनात्मक रूप से अस्थिर, विरोधाभासी और असामाजिक होते हैं। इन्हें अवसाद (डिप्रेशन) होने की आशंकाएं अधिक होती हैं। ये लोग नशा करने लगते हैं। मनोचिकित्सक आरएन साहू ने बताया कि, इस बीमारी में कोर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है। ये हार्मोन प्लेसेंटा को पार कर भ्रूण के मस्तिष्क के विकास को प्रभावित कर सकता है। यह भी पढ़ें- बैंक से कर्ज लेकर लौटा नहीं रहे लोग, एमपी में बैंकों के 35,668 करोड़ फंसे कैसे कम हो तनाव?
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को घर और दफ्तर में विशेष मदद की जानी चाहिए। उन पर काम का बोझ नहीं डालना चाहिए। तनाव महसूस करने पर उन्हें तनाव से बाहर निकलने के तरीके सुझाए जाने चाहिए। अच्छी डाइट लेने के साथ ही आराम व भरपूर नींद लेनी चाहिए और धूम्रपान से बचना चाहिए।