‘हिरणा किसना गोविन्दा…’ की गूंज नृसिंह मंदिरों के समक्ष शाम को नृसिंह-हिरण्यकश्यप प्रतीकात्मक युद्ध का मंचन होता है। इससे पूर्व दोपहर में हिरण्यकश्यप स्वरूप सड़कों पर उतर जाता है। हिरण्यकश्यप के पीछे बच्चे और युवा दौड़ लगाते रहते है। इस दौरान पारंपरिक रूप से ‘हिरणा किसना गोविन्दा प्रहलाद भजै’ के स्वरों की गूंज रहती है। हिरण्यकश्यप एक गली से दूसरी गली तक पहुंचता रहता है। दोपहर में छोटे बच्चे भी हिरण्यकश्यप का स्वरूप धारण कर गली-मोहल्लों में पहुंचते है।
कोड़े की मार, सटाक की आवाज हिरण्यकश्यप सड़कों पर हुंकार भरने के दौरान अपने एक हाथ में कपड़े को बटकर बनाए गए कोडे को भी रखता है। अहंकार से भरा हिरण्यकश्यप सड़कों पर दौड़ने के दौरान हर आने और जाने वाले पर कोडे की मार करता है। कई लोग इस कोडे को अपने सिर पर रखकर नमस्कार भी करते है व मार भी खाते है। वहीं गली-मोहल्लों और चौकियों पर कोडे को मारने से सटाक की आवाज भी निकलती है।
यहां भरते हैं मेले नृसिंह जयंती के अवसर पर शहर में स्थित नृसिंह मंदिरों के आगे नृसिंह मेलों और नृसिंह-हिरण्यकश्यप प्रतीकात्मक युद्ध का आयोजन होता है। डागा चौक, लखोटिया चौक, लालाणी व्यास चौक, नत्थूसर गेट, दुजारी गली, दमाणी चौक, फरसोलाई तलाई क्षेत्र, गोगागेट के बाहर नृसिंह मंदिर सहित कई स्थानों पर मेले भरते है। इनमें डागा चौकऔर लखोटिया चौक का इतिहास प्राचीन है।
थंब से प्रकट होते हैं भगवान नृसिंह हिरण्यकश्यप का अत्याचार बढ़ने और भक्त प्रहलाद की पुकार पर भगवान नृसिंह मंदिर में थंब से प्रकट होते है। नृसिंह अवतार मंदिर के बाहर मेला स्थल पर पहुंचते है। यहां नृसिंह और हिरण्यकश्यप के बीच प्रतीकात्मक कई बार युद्ध होता है। सूर्यास्त के समक्ष भगवान नृसिंह, हिरण्यकश्यप का वध करते है। इस दौरान मेला स्थल भगवान नृसिंह व भक्त प्रहलाद के जयाकरों से गूंज उठता है। नृसिंह अवतार की आरती होती है व प्रसाद का वितरण होता है।