9वीं सदी की धरोहर, पंचायतन शैली का अनुपम उदाहरण
लक्ष्मण मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में लगभग 930 से 950 ईस्वी के बीच हुआ था। यह खजुराहो के प्राचीनतम और पूर्ण विकसित मंदिरों में से एक है। मंदिर की संरचना पंचायतन शैली की है, जिसमें मुख्य मंदिर के चारों कोनों पर चार उपमंदिर स्थित हैं। 98 फीट लंबा और 45 फीट चौड़ा यह मंदिर अपने सामने गरुड़ के लिए बनाए गए एक छोटे मंदिर से जुड़ा हुआ था, जिसकी मूर्ति अब लुप्त हो चुकी है। यह छोटा मंदिर वर्तमान में देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है।
महामंडप की अप्सराएं और छत की अनूठी संरचना
लक्ष्मण मंदिर की छतें स्तूप के आकार की हैं, जिनमें शिखरों का अभाव है, जो इसे खजुराहो के अन्य मंदिरों से अलग बनाता है। इसके मंडप और महामंडप की छतें खपरों जैसी दिखती हैं, जिनके किनारों पर नागों की छोटी-छोटी आकृतियां अंकित की गई हैं। मंडप की छत पर लटकी हुई पत्रावली और कलश का अलंकरण इसकी सुंदरता में और भी निखार लाता है। मंदिर के भीतर महामंडप में स्तंभों पर अलंकरण के रूप में उकेरी गई अप्सराएं अद्भुत शिल्प कौशल का परिचय देती हैं।
त्रिमुखी विष्णु की अद्वितीय मूर्ति और जीवन के दृश्यों का चित्रण
मंदिर के भीतर मूर्तियों की बनावट और अलंकरण में गुप्तकालीन कला की झलक मिलती है। मंदिर के कुछ स्तंभों पर बेलबूटों का बारीक और उत्कृष्ट अंकन किया गया है। द्वार पर बने मकर तोरण में योद्धाओं के दृश्य बड़ी कुशलता से दर्शाए गए हैं। प्रवेश द्वार के सिरदल पर दो भारी सज्जापट्टियां हैं। निचली सज्जापट्टी के केंद्र में लक्ष्मी की प्रतिमा है, जिसके एक ओर ब्रह्मा और दूसरी ओर शिव की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं।
जीवन दृश्यों को चित्रित किया
मंदिर की बाहरी दीवारों पर अनेक जीवन दृश्यों को चित्रित किया गया है। इनमें आखेट करते राजाओं, युद्ध करते सैनिकों, हाथी-घोड़े और पैदल चल रहे जुलूसों, पारिवारिक जीवन और त्योहारों की झलक मिलती है। मंदिर की जंघा पर देवी-देवताओं, गंधर्वों, अप्सराओं, शार्दूलों और सुर-सुंदरियों की मनोहारी मूर्तियां इसकी सौंदर्यात्मकता को और बढ़ा देती हैं।