कभी शहर के बीच में था
बैल बाजार पुराने समय में मुख्य बाजारों का एक हिस्सा हुआ करते थे। इन बाजारों की धूम इतनी अधिक होती थी, कि दूर-दराज से लोग अपने पशुओं को लेकर बेचने एवं खरीदने पहुंचते थे। निगम राजस्व प्रभारी साजिद खान ने बताया कि वे 50 साल से अधिक समय से बैल बाजारों को लगते हुए देख रहे हैं। सप्ताह में एक दिन नियत रहता था। वर्तमान में प्रत्येक रविवार का दिन नियत है। पुराने समय पर यातायात चौक के पास यातायात थाने के पीछे बैल बाजार लगता था। बाद में रेलवे क्रॉसिंग के पास से पीजी कॉलेज रोड में शिफ्ट हुआ। आज भी ये दोनों स्थल पुराना बैल बाजार के नाम से पहचाने जाते हैं। बाद में शहर का घनत्व बढ़ा और बैल बाजार को निगम की बनाई गए आनंदम के भवनों के सामने स्थापित किया गया। शुरुआत में यहां भी आसपास से पशुधन लेकर लोग आते रहे, अब यहां गिनती के लोग ही पहुंच रहे हैं।
निगम को होती थी आमदनी
बैल बाजारों में बिकने वाले पशुओं से नगर निगम को आमदनी होती थी। पिछले कुछ सालों तक नगर निगम बैल बाजारों के ठेका के लिए नीलामी भी करवाता रहा है। वर्तमान में अब बैल बाजार के ठेके के लिए व्यापारी उत्सुक नहीं हैं। उनका कहना है कि जब बैल बाजार में मवेशी ही बिकने नहीं आ रहे, तो ठेका लेकर भी क्या फायदा होगा। नगर निगम को प्रत्येक पशु के बिकने पर पांच फीसद प्रति सैकड़ा की दर से राजस्व मिलता था। यह आंकड़ा कई बार यह एक दिन में 50 हजार से 1 लाख रुपए तक भी पहुंच चुका है। इन दिनों यह आमदनी डेढ़-दो हजार रुपए तक में सिमट गई है। कभी-कभी तो एक भी रसीद नहीं कटती हैं। बाजार दुकान प्रभारी वीरेंद्र मालवी ने बताया कि बैल बाजार का ठेका कई बार 20 लाख से लेकर 30 लाख रुपए के बीच तक हो चुका है। निगम को इससे काफी आय हो जाती थी।