scriptDarsh Amavasya Katha 2024: आखिर क्या वजह है दर्श अमावस्या को मनाने का, जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा | What reason of celebrating amavasya vrat know the mythological katha of darsh Amavasya vrat 2024 | Patrika News
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Darsh Amavasya Katha 2024: आखिर क्या वजह है दर्श अमावस्या को मनाने का, जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

Darsh Amavasya Katha 2024 क्या आपको पता है दर्श अमावस्या मनाने का कारण, अगर नहीं तो यहां जाने इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में..

जयपुरNov 23, 2024 / 02:02 pm

Diksha Sharma

Darsh Amavasya Katha 2024

Darsh Amavasya Katha 2024

Darsh Amavasya Katha 2024: दर्श अमावस्या कृष्ण पक्ष की आखिरी तिथि को पड़ती है। इस दिन पितृ दोष से मुक्ति के लिए उपाय किए जाते हैं। लेकिन इससे जुड़ी पौराणिक कथा भी है, तो आइए जानते हैं..

दर्श अमावस्या (Darsh Amavasya)

हिन्दु कैलेण्डर में नये चन्द्रमा के दिन को अमावस्या कहते हैं। यह एक महत्वपूर्ण दिन होता है क्योंकि कई धार्मिक कृत्य केवल अमावस्या तिथि के दिन ही किए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या जब सोमवार के दिन पड़ती है तो उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं और अमावस्या जब शनिवार के दिन पड़ती है तो उसे शनि अमावस्या कहते हैं। पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए अमावस्या के सभी दिन श्राद्ध की रस्मों को करने के लिए उपयुक्त हैं। कालसर्प दोष निवारण की पूजा करने के लिए भी अमावस्या का दिन उपयुक्त होता है। अमावस्या को अमावस या अमावसी के नाम से भी जाना जाता है।
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दर्श अमावस्या व्रत कथा (Darsh Amavasya Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है कि समस्त बारह सिंह आत्माएं सोमरोस पर रहा करती थीं। उनमें से एक आत्मा ने गर्भ धारण करने के बाद एक खूबसूरत सी कन्या को जन्म दिया। जिसका नाम अछोदा रखा गया। अछोदा बचपन से ही अपनी माता की देखरेख में पली बढ़ी थी। ऐसे में उसे शुरुआती दिनों से ही हमेशा अपने पिता की कमी महसूस होती थी। जिसके कारण एक बार उसे सारी आत्माओं ने मिलकर धरती लोक पर राजा अमावसु की पुत्री के रूप में जन्म लेने को कहा राजा अमावसु एक प्रसिद्ध और महान राजा थे। जिन्होंने अपनी पुत्री अछोदा का लालन पोषण बहुत अच्छे से किया।
ऐसे में पिता का प्यार पाकर अछोदा काफी प्रसन्न रहने लगी। इसके बदले में अछोदा पितृ लोक की आत्माओं का आभार जताना चाहती थी। इसके लिए उसने श्राद्ध का मार्ग अपनाया। इस कार्य को करने के लिए उसने सबसे अंधेरी रात को चुना। जिस दिन चंद्रमा आकाश में मौजूद नहीं होता, उस दिन वह पितृ आत्माओं का विधि विधान से पूजन करने लगी। पितृ भक्ति के कारण अछोदा को वो तमाम सुख मिले, जो उसे स्वर्ग में भी प्राप्त नहीं हो रहे थे। तभी से बिना चंद्रमा के आकाश को राजा अमावसु के नाम पर अमावस्या नाम से जाना जाने लगा।
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ऐसी मान्यता है कि इस दिन पितृ अपने लोक से धरती पर वापस आते हैं और अपने प्रियजनों को आशीर्वाद देते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार, पितरों का श्राद्ध करते वक्त चंद्रमा दिखाई नहीं देना चाहिए। यही वजह है कि दर्श अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध करने की प्रथा है।
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