कौन था रक्तबीज
धार्मिक कथाओं के अनुसार रक्तबीज एक दानव था, जो महर्षि कश्यप और दिति के गर्भ से पैदा हुए था। मान्यता है कि रक्तबीज ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। उसने शिव को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किया कि उसके शरीर से खून की एक बूंद भी जमीन पर गिरेगी तो उसका नया रूप पैदा हो जाएगा। मान्यता है कि इस वरदान के कारण रक्तबीज को हराना असंभव हो गया। उसका अत्याचार इतना बढ़ गया कि देवलोक के सभी देवता माता दुर्गा के पास सहयता मांगने के लिए गए। जब मां दुर्गा ने देवताओं की पीणा को दूर करने के लिए मां दुर्गा ने किया और रक्तबीज के साथ युद्ध शुरू किया। लेकिन उसकी हर चोट से गिरा रक्त नए रक्तबीजों को जन्म देता था। इससे युद्ध और भी कठिन हो गया।
दर्गा ने लिया काली का रूप
धार्मिक मान्यता है कि माता दर्गा ने रक्तबीज को समाप्त करने के लिए ने अपनी शक्ति से मां काली का आह्वान किया और माता काली का रौद्र रूप धारण किया। इसके बाद दोनों में भीषण युद्ध हुआ। जैसा कि दानव रक्तबीज को वरदान प्राप्त था तो वह युद्ध में हर बार नये रूप में उत्पन्न होता। लेकिन माता काली ने अपने भयानक रूप में रक्तबीज के रक्त को जमीन पर गिरने नहीं दिया, बल्कि उसके खून को अपनी जीभ से पी लिया था। जिसके बाद रक्तबीज को पूरी तरह नष्ट कर दिया।
असुरों के संहार के लिए मां दुर्गा के कई रूप
मां काली का प्रकट होना बुराई और अन्याय को समाप्त करने का प्रतीक माना जाता है। माता ने अधर्म और अत्याचार को खत्म करने के लिए कई अवतार लिए हैं। जिनकी आज अलग- अलग रूप में पूजा होती है। इसके साथ ही उन्होंने यह दिखाया कि अधर्म और अत्याचार के विरुद्ध जब अन्य उपाय विफल हो जाते हैं, तब शक्ति का आह्वान किया जाता है।
सबसे शक्ति शाली दैत्य था रक्तबीज
माता ने महिषासुर, धूम्रविलोन और शुंभ-निुशुंभ जैसे राक्षसों का अंत करने के लिए अलग-अलग रूप धारण किए। लेकिन इस सभी दानवों में रक्तबीज सबसे भयंकर मायावी और बलशाली था। जिसका अंत करना देवताओं के वश की बात नहीं थी। इसलिए देवता मां दुर्गा के पास गए और उनसे विनती की। जिसके बाद माता ने काली रुप में रक्तबीज का वध कर के धर्म और न्याय की स्थापना की। उसी दिन माता काली की पूजा की जाती है। रक्तबीज और माता काली के युद्ध की कहानी मार्कंडेय पुराण में विस्तार से बताई गई है।