स्किन के इन संकेतों को न करें नजरअंदाज, ये थायराइड की समस्या हो सकती है
थायराइड हार्मोन (Thyroid hormone) स्वास्थ्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह भ्रूण में त्वचा के विकास से लेकर बाल उगाने और सेबम उत्पादन के प्रारंभ और निर्वाहन तक के लिए जिम्मेदार होता है। उन्होंने कहा, “जब थायराइड (Thyroid) अत्यधिक क्रियाशील होता है, तो यह त्वचा में परिवर्तन पैदा करता है जो कई समस्याएं पैदाकर सकता सकता है। थायराइड (Thyroid) शरीर की मेटाबॉलिज्म (Metabolism) को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और थायराइड (Thyroid) हार्मोन के असंगति लगभग हर प्रणाली को प्रभावित करती है।
थायराइड हार्मोन (Thyroid hormone) स्वास्थ्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह भ्रूण में त्वचा के विकास से लेकर बाल उगाने और सेबम उत्पादन के प्रारंभ और निर्वाहन तक के लिए जिम्मेदार होता है। उन्होंने कहा, "जब थायराइड (Thyroid) अत्यधिक क्रियाशील होता है, तो यह त्वचा में परिवर्तन पैदा करता है जो कई समस्याएं पैदाकर सकता सकता है। थायराइड (Thyroid) शरीर की मेटाबॉलिज्म (Metabolism) को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और थायराइड (Thyroid) हार्मोन के असंगति लगभग हर प्रणाली को प्रभावित करती है।
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हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) हाइपोथायरायडिज्म तब होता है जब शरीर में थायराइड हार्मोन का अपर्याप्त संचार होता है। इससे निम्नलिखित त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं: मिक्सोडीमा (Myxedema): यह कोलेजन के टूटने और कमजोर होने का कारण बनता है, जिससे बालों के रोम भी प्रभावित होते हैं। त्वचा का पीलापन: त्वचा पतली और झुर्रियोंदार हो जाती है। ठंडी त्वचा: रक्त वाहिकाओं का संकुचन होने के कारण त्वचा ठंडी लगती है। अत्यधिक शुष्क त्वचा: इससे हाथों और पैरों की त्वचा मोटी हो सकती है और दरारें भी पड़ सकती हैं। त्वचा का पीलापन: खासकर हथेलियों और तलवों पर त्वचा का पीलापन हो सकता है। शुष्क, नाज़ुक और मोटे शरीर के बाल: सीबम का कम होना बालों के विकास को धीमा कर देता है, जिससे शरीर के बाल रूखे, कमजोर और मोटे हो जाते हैं। भौंहों का झड़ना (Madarosis): भौंहों के बाल झड़ सकते हैं। पतले और कमजोर नाखून: नाखून पतले और कमजोर हो सकते हैं। घाव भरने में देरी: घाव भरने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। पसीना न आना: शरीर से पसीना कम निकलता है या बिल्कुल नहीं निकलता। त्वचा खुरदरी हो जाती है।
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हाइपरथायरायडिज्म (Hyperthyroidism) हाइपरथायरायडिज्म तब होता है जब शरीर में थायराइड हार्मोन का अधिक उत्पादन होता है। इससे निम्नलिखित त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं: त्वचा का पतला होना: त्वचा चिकनी, मुलायम, पतली, गर्म और नम दिखाई देती है। यह चेहरे, कोहनी और यहां तक कि हथेलियों की लालिमा का भी कारण बन सकती है। गैर-निशान खालित्य (Non-scarring alopecia) या बालों का झड़ना: बाल झड़ते हैं लेकिन स्कैल्प पर निशान नहीं बनते। प्लमर नाखून (Plummer's nail): नाखून अंदर से घुडानुमा आकार के हो जाते हैं और नाखून के तल से उठे हुए दिखाई देते हैं। त्वचा के नीचे दिखने वाली केशिकाएं (Visible capillary vessels): त्वचा के नीचे छोटी रक्त वाहिकाएं दिखाई दे सकती हैं। अत्यधिक पसीना आना: पसीना असामान्य रूप से ज्यादा आता है। ग्रेव्स डिजीज (Grave's disease) के कारण त्वचा का मोटा होना: गंभीर मामलों में त्वचा मोटी हो सकती है। पैरों, पिंडली और पिंडलियों पर लाल या भूरे रंग की गांठें (Nodules): पिंडली, पैरों और पिंडलियों के क्षेत्रों पर लाल या भूरे रंग की गांठें विकसित हो सकती हैं। बालों का जल्दी सफेद होना: बाल समय से पहले सफेद हो सकते हैं। अत्यधिक त्वचा रंजकता (Hyperpigmentation): त्वचा का रंग असमान हो सकता है और कुछ क्षेत्रों में गहरा हो सकता है।
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थायराइड से जुड़ी त्वचा समस्याओं का उपचार (How to Care for Skin with Thyroid Issues) त्वचा की स्थिति को कम करने और उसका इलाज करने का एकमात्र सही और सबसे अच्छा उपाय थायराइड के लिए सही इलाज करवाना है। "इसमें बीमारी का सही निदान, नियमित दवाएं लेना और जीवनशैली में कुछ बदलाव शामिल हैं।" आपको जो समस्याएं हो रही हैं उनके आधार पर - और एक बार थायराइड की दवाएं लेना शुरू करने के बाद - त्वचा विशेषज्ञ उपचार शुरू कर देंगे। थायराइड से होने वाली त्वचा की समस्याओं के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ सामान्य विधियां हैं: औषधीय लेप (Topical treatments): ट्रेटीनोइन, कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स, कोजिक एसिड, हाइड्रोक्विनोन जैसी दवाएं त्वचा को शांत करती हैं, सूजन और रंगद्रव्यन (हाइपरपिगमेंटेशन) को कम करती हैं। प्रक्रियाएं (Procedures): केमिकल पील, माइक्रोडर्माब्रेशन और लेजर उपचारों का उपयोग त्वचा की बनावट को बेहतर बनाने और कोलेजन उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है। सूर्य से सुरक्षा (Sun protection): त्वचा की सभी समस्याओं से निपटने के लिए सूरज से सुरक्षा आवश्यक है। विशेषज्ञ के अनुसार कम से कम SPF 30+++ का सनस्क्रीन लगाना चाहिए। त्वचा को सुरक्षित रखने के लिए हर दो से तीन घंटे में सनस्क्रीन लगाएं।