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8 साल के बच्चे पर कुत्ते ने किया हमला, 20 दिनों में यह दूसरी बड़ी घटना, बढ़ रहा खतरा.. मिली जानकारी के मुताबिक, घटना 17 मार्च की है। फिंगेश्वर ब्लॉक के एक गांव में 14 साल के बच्चे का दूसरे बच्चे से
विवाद हुआ। बच्चों की लड़ाई में कुछ देर बाद फिंगेश्वर पुलिस गांव आई। 14 साल के बच्चे को तलाशते हुए उसके घर पहुंची। पीड़ित के पिता के मुताबिक, पुलिस वाले बच्चे को अपने साथ पीसीआर में बिठाकर थाने के लिए निकले। पीछे-पीछे वे भी गए। सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक, तकरीबन 5 घंटे उन्हें अपने बच्चे से नहीं मिलने दिया गया। इस दौरान उन्होंने केवल एक बार बच्चे को देखा, जब टीआई गला दबाकर उसे थाने के एक छोर से दूसरी ओर ले जा रहे थे।
वहीं, बच्चे का कहना है कि थाने के भीतर घुसते ही टीआई ने जोर की आवाज लगाकर उसे और पुलिसवाले को अंदर बुलाया। यहां पहले उसके सिर पर कई चप्पलें मारी। फिर पेट पर जोर की लात मारी, जिससे वह बदहवाश होकर दूसरी ओर रखे सोफे पर जा गिरा। इसके बाद टीआई ने पुलिस वाले से कहा कि इसे व्यायाम कराओ। फिर वे उसे अंदर ले गए। बिठाया और दोनों पैरों के पीछे डंडा रगड़ने लगे। हड्डियों में अकल्पनीय दर्द से वह चीख उठा।
पुलिसवालों को जब लगा कि अब और सहने की स्थिति में नहीं है, तो टीआई के पास ले गए। टीआई ने कहा कि दोबारा व्यायाम कराओ। इसके बाद पुलिसवालों ने उसके हाथ के दोनों पंजों को प्रणाम की मुद्रा लाने कहा और इसके बीच एक पेन फंसा दिया। फिर अपने हाथों से उसके पंजों को दबाकर पेन रगड़ने लगे। इस तरह उसे घंटों टॉर्चर करने के आरोप हैं।
आरोप मिथ्या, मेडिकल से घरवालों ने मना किया ,फिंगेश्वर थाना टीआई पवन वर्मा ने कहा सारे आरोप मिथ्या हैं। गांव में बच्चों का झगड़ा हुआ था। रिपोर्ट लिखाने आए थे कि ब्लेड से हमला हुआ है। शिकायत पर थाने बुलाया था। दोनों पक्षों में समझौता हो गया। राजीनामा भी बनाया गया। मेडिकल के लिए लिखा, तो बच्चे के घरवालों ने ही मना कर दिया। उस बच्चे पर धारा 354 और पॉक्सो एक्ट के तहत एक पुराना केस अभी अंडर ट्रायल है।
मारपीट का अधिकार किसी पुलिस को नहीं सोनल कुमार गुप्ता ने कहा नाबालिग (चाहे वह अपचारी हो या न हो) से मारपीट का अधिकार पुलिस को नहीं है। यह जेजे एक्ट के प्रावधानों के विपरीत है। मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। निष्पक्ष कार्रवाई हो। डीपीओ, डीसीपीओ तत्काल पीड़ित बच्चे को मानसिक शारीरिक स्वास्थ्य के लिए इलाज मुहैया कराएं।
रायपुर ले गए, वहां भी रिपोर्ट नहीं लिखी गई थाने से छूटने के बाद बच्चे की मन:स्थिति पर इतना बुरा प्रभाव पड़ा कि वह अपने पिता से बात करना दूर, उनकी ओर देख तक नहीं रहा था। किसी तरह शाम कट गई। रात में असहनीय दर्द उठा, तो रो-रोकर मां को अपने साथ हुई मारपीट के बारे में बताया। मां ने फौरन मोबाइल पर अपने जेठ को घटना की जानकारी दी।
अगली सुबह बड़े पिता ही बच्चे को इलाज के लिए रायपुर ले गए। यहां डॉक्टरों ने बताया कि मारपीट से बच्चे को सिर और पेट में अंदरूनी चोटें आई हैं। हॉस्पिटल की पर्ची के साथ वे विधानसभा पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखाने गए। यहां पुलिसवालों ने एफआईआर लिखने से इनकार कर दिया। उन्हें फिंगेश्वर थाने जाकर एफआईआर लिखाने की नसीहत दी।
पीड़ित के पिता अपना दर्द बयां करते हुए कहते हैं, मैं गरीब हूं। 2 बेटी और एक बेटा है। छोटी-मोटी दुकान से किसी तरह गुजारा चल रहा है। थाने से बच्चे को छोड़ने से पहले एक महिला पुलिस ने मुझसे पूछा, साहब (टीआई) कुछ बोले हैं? मैंने बताया कि दोनों पार्टी को 10-10 हजार रुपए देकर समझौता करने बोले हैं। इस तरह मुझसे सीधे तौर पर 10 हजार रुपए की रिश्वत मांगी गई। मैंने कहा कि परिवार का पेट पालना मुश्किल है। इतने पैसे नहीं ला पाऊंगा। फिर जेब में रखे 500 रुपए मिठाई खाने के लिए उनकी ओर बढ़ाए। इसे देखकर पुलिसवाले उसका मजाक बनाकर हंसने लगे (यह बताकर पिता रो पड़े)।