करीब आठ साल पहले जब उन्होंने शहर की सड़कों पर गायों को प्लास्टिक और कचरा खाते हुए देखा, तो उनके भीतर एक पीड़ा जागी और उसी दिन उन्होंने तय कर लिया कि वे इस दिशा में कुछ सार्थक करेंगे। इसके बाद से हर रविवार और पूर्णिमा के दिन ये दोनों मित्र शहर के विभिन्न कोनों में जाकर तकरीबन 500 रोटियां गायों को खिलाते हैं। यह सेवा अखिल भारतीय राजेन्द्र जैन परिषद के निर्देशन में चल रही है। रोटियों को एक दिन पहले स्थानीय साधार्मिक परिवारों से बनवाया जाता है, जिससे उन परिवारों को भी आर्थिक सहयोग मिलता है। यह सिर्फ सेवा नहीं, बल्कि समाज को जोडऩे वाला एक अभियान बन चुका है।
गुणवंत कांकरिया और कैलाश गांधीमूथा बताते हैं कि यह कार्य उन्हें आत्मिक शांति और संतोष प्रदान करता है। लॉकडाउन के कठिन समय में जब चारों ओर निराशा का माहौल था, तब भी इन्होंने अपने सेवा कार्य को नहीं रोका। पहले लॉकडाउन में इन्होंने डेढ़ महीने तक गायों को हरी घास खिलाई। दूसरे लॉकडाउन में एक महीने तक प्रतिदिन 1000 रोटियां गायों को खिलाईं और साथ ही कुत्तों को रोजाना 10 लीटर दूध भी पिलाया। यही नहीं, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और अस्पतालों के बाहर जरूरतमंद लोगों को एक महीने तक भोजन भी उपलब्ध कराया।
इनकी सेवाएं सिर्फ गौसेवा तक सीमित नहीं रहीं। पर्युषण पर्व के दौरान इन्होंने एक विशेष पहल “एक मुट्ठी अनाज योजना” की शुरुआत की, जो पिछले आठ वर्षों से लगातार जारी है। इस योजना के तहत शहर के विभिन्न घरों से अनाज एकत्र कर कबूतरों को दाना डाला जाता है।
सेवा की शुरुआत- 8 साल पहले
हर रविवार एवंं पूर्णिमा की सेवा- 500 रोटियां गायों को
लॉकडाउन सेवा- 1000 रोटियां, 10 लीटर दूध प्रतिदिन
मानव सेवा- जरूरतमंदों को भोजन
पक्षी सेवा- पर्युषण पर्व में कबूतरों को दाना