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गौसेवा में समर्पित दो दोस्त: हर रविवार और पूर्णिमा के दिन 500 रोटियों के साथ करते हैं नि:स्वार्थ सेवा

कर्नाटक के हुब्बल्ली शहर की गलियों में हर रविवार और पूर्णिमा की सुबह एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। दो मित्र गुणवंत कांकरिया और कैलाश गांधीमूथा। सड़कों के किनारे गायों को अपने हाथों से रोटियां खिला रहे होते हैं। यह दृश्य न केवल मानवता और सेवा भावना की मिसाल है, बल्कि समाज के लिए एक गहरा संदेश भी देता है।

हुबलीMay 16, 2025 / 08:46 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

कैलाश गांधीमूथा और गुणवंत कांकरिया

कैलाश गांधीमूथा और गुणवंत कांकरिया

गुणवंत कांकरिया राजस्थान के जालोर जिले के चूरा गांव के निवासी हैं, जबकि कैलाश गांधीमूथा सायला गांव से हैं। आज यह जोड़ी गौसेवा के क्षेत्र में एक परिचित नाम बन चुकी है। इन दो मित्रों की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर दिल में सेवा की भावना हो, तो कोई भी काम असंभव नहीं। जहां आज समाज में स्वार्थ और व्यस्तता हावी है, वहीं गुणवंत कांकरिया और कैलाश गांधीमूथा जैसे लोग हमें निस्वार्थ सेवा की असली परिभाषा समझाते हैं। इनकी सेवा न केवल गायों और अन्य जीवों के लिए वरदान है, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणा भी है।

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गायों को प्लास्टिक खाते देखा तो जगी भावना
करीब आठ साल पहले जब उन्होंने शहर की सड़कों पर गायों को प्लास्टिक और कचरा खाते हुए देखा, तो उनके भीतर एक पीड़ा जागी और उसी दिन उन्होंने तय कर लिया कि वे इस दिशा में कुछ सार्थक करेंगे। इसके बाद से हर रविवार और पूर्णिमा के दिन ये दोनों मित्र शहर के विभिन्न कोनों में जाकर तकरीबन 500 रोटियां गायों को खिलाते हैं। यह सेवा अखिल भारतीय राजेन्द्र जैन परिषद के निर्देशन में चल रही है। रोटियों को एक दिन पहले स्थानीय साधार्मिक परिवारों से बनवाया जाता है, जिससे उन परिवारों को भी आर्थिक सहयोग मिलता है। यह सिर्फ सेवा नहीं, बल्कि समाज को जोडऩे वाला एक अभियान बन चुका है।
आत्मिक शांति एवं संतोष की भावना
गुणवंत कांकरिया और कैलाश गांधीमूथा बताते हैं कि यह कार्य उन्हें आत्मिक शांति और संतोष प्रदान करता है। लॉकडाउन के कठिन समय में जब चारों ओर निराशा का माहौल था, तब भी इन्होंने अपने सेवा कार्य को नहीं रोका। पहले लॉकडाउन में इन्होंने डेढ़ महीने तक गायों को हरी घास खिलाई। दूसरे लॉकडाउन में एक महीने तक प्रतिदिन 1000 रोटियां गायों को खिलाईं और साथ ही कुत्तों को रोजाना 10 लीटर दूध भी पिलाया। यही नहीं, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और अस्पतालों के बाहर जरूरतमंद लोगों को एक महीने तक भोजन भी उपलब्ध कराया।
एक मुट्ठी अनाज योजना
इनकी सेवाएं सिर्फ गौसेवा तक सीमित नहीं रहीं। पर्युषण पर्व के दौरान इन्होंने एक विशेष पहल “एक मुट्ठी अनाज योजना” की शुरुआत की, जो पिछले आठ वर्षों से लगातार जारी है। इस योजना के तहत शहर के विभिन्न घरों से अनाज एकत्र कर कबूतरों को दाना डाला जाता है।
सेेवा ही धर्म
सेवा की शुरुआत- 8 साल पहले
हर रविवार एवंं पूर्णिमा की सेवा- 500 रोटियां गायों को
लॉकडाउन सेवा- 1000 रोटियां, 10 लीटर दूध प्रतिदिन
मानव सेवा- जरूरतमंदों को भोजन
पक्षी सेवा- पर्युषण पर्व में कबूतरों को दाना

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