इससे पहले हाई कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाया था कि पदोन्नति से इनकार करने के बावजूद कर्मचारी को दी गई क्रमोन्नति वापस नहीं ली जा सकती। इसी तर्क को आधार बनाकर याचिकाकर्ता रमेशचंद्र पेमनिया ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जिसके बाद इस पर हाईकोर्ट जस्टिस संजीव सचदेवा, जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस विनय सराफ की फुल बेंच में सुनवाई हुई। इस दौरान राज्य शासन ने कोर्ट में तर्क दिया कि समयमान वेतनमान और क्रमोन्नति की नीति के तहत यदि कोई कर्मचारी स्वयं पदोन्नति लेने से इनकार करता है, तो उसे भविष्य में पदोन्नति या वेतन वृद्धि का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद अब इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि कोई कर्मचारी पदोन्नति लेने से इनकार करता है तो वह ना तो क्रमोन्नति का हकदार होगा ना ही समयबद्ध वेतनमान का लाभ लेने का अधिकार रखता है। हाईकोर्ट के इस फैसले का असर सीधे सीधे प्रदेश के सभी सरकारी कर्मचारियों पर पड़ेगा ।