World Environment Day: बस्तर के दामोदर ने बनाया 400 एकड़ का जंगल, अपनी अनोखी तरकीब से बचाया पर्यावरण
World Environment Day: आज देश भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्थाओं से चर्चा करते हैं तो इसमें चर्चा का केंद्र बिंदु पेड़ों को बचाने के उपायों पर होता है। वहीं जंगल के संरक्षण के लिए बस्तर के दमादोर की मिसाल दी जाती है।
दामोदर ने बनाया 400 एकड़ का जंगल (Photo source- ABP News)
World Environment Day: छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र, जो अक्सर माओवादी गतिविधियों और सुरक्षा बलों के बीच तनाव के कारण सुर्खियों में रहता है, अब एक नई और सकारात्मक वजह से चर्चा में है। इस क्षेत्र में जंगल का घनत्व और विस्तार बढ़ाने में छत्तीसगढ़ वन विभाग ने उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, जिसने बस्तर को एक समृद्ध हरे-भरे परिदृश्य के रूप में नई पहचान दी है।
विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर यह खबर न केवल पर्यावरण प्रेमियों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा का काम कर रही है। रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने ट्वीट किया कि बस्तर पारिस्थितिकी पुनरुद्धार के एक मॉडल के रूप में उभर रहा है। ISFR 2023 के अनुसार, 152 वर्ग किलोमीटर का जंगल बहुत घने जंगल में तब्दील हो गया है– जो प्रभावी वन प्रबंधन, आदिवासी भागीदारी और राज्य के मजबूत संरक्षण अभियान को दर्शाता है।
खड़ा किया 400 एकड़ में जंगल
बस्तर के दामोदर की बात करें तो आज देश भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्थाओं से चर्चा करते हैं। चर्चा का केंद्र बिंदु पेड़ों को बचाने के उपायों पर होता है। दामोदर वर्ष 1970 में 12वीं की पढ़ाई के बाद गांव पहुंचे। उन्होंने देखा कि गांव के पीछे की हरी भरी जमीन पर एक भी पेड़ नहीं है, वन विभाग ने बहुत सारे पेड़ काट दिए थे, बाकि बचे पेड़ों को गांव वालों ने साफ कर दिया था। उन्होंने पेड़ों को बचाने और ग्रामीणों को जागरूक करने का फैसला किया।
वहीं दामोदर ने आगे बताया कि, काम आसान नहीं था शुरुआत में ग्रामीणों का विरोध झेलना पड़ा, विरोध के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और वर्ष 1977 में सरपंच बनने के बाद मिशन से पीछे नहीं हटे। उन्होंने मौसम के अनुकूल पौधों को लगाने का काम शुरू किया, पौधे लगाने से ज्यादा बड़ी चुनौती संरक्षण की थी, इसलिए उन्होंने ग्रामीणों के लिए ठेंगा पाली का नियम बनाया।
जंगल बचेंगे तो हम भी बचेंगे
World Environment Day: दामोदर आज देश भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्थाओं से चर्चा करते हैं। चर्चा का केंद्र बिंदु पेड़ों को बचाने के उपायों पर होता है, प्रकृति के लिए समर्पण भाव को देखते हुए स्विट्जरलैंड और फिलीपींस में दामोदर को सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने तेजी से काटे जा रहे जंगलों की कटाई पर चिंता जताई है। जंगल के बिना जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती, जंगल बचेंगे तो हम भी बचेंगे, इसलिए लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होना जरूरी है।
ठेंगा मतलब (डंडा) और पाली मतलब (पारी) नियम के तहत गांव के तीन सदस्य रोजाना जंगलों की सुरक्षा करने लगे। डंडे को कपड़े से लपेट कर देव का रूप दिया गया, जंगल की सुरक्षा में नहीं जाने वाले ग्रामीणों पर अर्थदंड भी लगाया जाने लगा। जंगलों को नुकसान पर पंचायत अर्थदंड देती, दामोदर के लगातार प्रयास से ग्रामीणों का भी हौसला बढ़ने लगा। बुलंद हौसले की बदौलत गांव के आसपास 400 एकड़ में घना जंगल तैयार हो गया। उन्होंने बताया कि जंगल को देखने वन विभाग के अधिकारी भी आते हैं। विशेषकर आज तक उनके जंगलों में कभी आग नहीं लगी है।
जगदलपुर और कांकेर सर्कल में सबसे ज्यादा सुधार
मीडिया रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि बस्तर के कई क्षेत्रों में जंगल का वर्गीकरण ऊपर की ओर बढ़ा है। सबसे उल्लेखनीय सुधार जगदलपुर सर्कल में देखा गया, जिसमें बस्तर, बीजापुर, सुकमा और दंतेवाड़ा वन डिवीजन शामिल हैं।
इसके अलावा, कांकेर सर्कल में भी महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, जिसमें केशकाल, भानुप्रतापुर, दक्षिण कोंडागांव और नारायणपुर वन डिवीजन शामिल हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने आईएसएफआर रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि इन क्षेत्रों में जंगल की गुणवत्ता और घनत्व में बड़ा बदलाव आया है, जो संरक्षण के लिए किए गए प्रयासों का सकारात्मक परिणाम है।
विश्व पर्यावरण दिवस पर एक प्रेरणा
World Environment Day: विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर यह खबर बस्तर के लिए एक बड़ी उपलब्धि के रूप में सामने आई है। यह न केवल छत्तीसगढ़ के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल है। खासकर दामोदर से हम सबको सीखना चाहिए कि पेड़ों की रक्षा कैसी करनी चाहिए। बस्तर का यह हरा-भरा पक्ष अब नई उम्मीदों और संभावनाओं का प्रतीक बन गया है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और हरियाली भरा भविष्य सुनिश्चित करता है।
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