सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकारें अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर बिजली के उपयोग को नियंत्रित कर सकती हैं, जबकि अंतर-राज्यीय विद्युत व्यापार केंद्र सरकार के अधीन रहेगा। यह फैसला विद्युत अधिनियम, 2003 की व्याख्या को स्पष्ट करते हुए आया है।
राजस्थान सरकार और RERC की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने कहा कि 17 अक्टूबर 2024 को सुरक्षित रखा गया यह ऐतिहासिक निर्णय 1 अप्रैल 2025 को सुनाया गया, जिससे राज्य और उपभोक्ताओं को राहत मिली है।
क्या था यह मामला?
यह मामला रामायण इस्पात प्रा. लि. और हिंदुस्तान जिंक लि. जैसी बड़ी कंपनियों द्वारा दायर किया गया था, जिन्होंने राजस्थान की 2016 की विद्युत विनियमों को चुनौती दी थी। कंपनियों का कहना था कि ये नियम उनके अपने पावर प्लांट्स या बाहरी राज्यों से बिजली खरीदने के अधिकार को अनुचित रूप से सीमित करते हैं। उन्होंने कहा कि “ओपन एक्सेस” (जिसमें बड़े उपभोक्ता अपनी पसंद के बिजली आपूर्तिकर्ता को चुन सकते हैं) को प्रयोग करना इन विनियमों के कारण कठिन और महंगा हो गया है।सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
2016 के RERC विनियम पूरी तरह वैध: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि RERC द्वारा बनाए गए नियम पूरी तरह कानूनी हैं और वे राज्य के भीतर बिजली प्रबंधन को व्यवस्थित करने के लिए आवश्यक हैं। कैप्टिव पावर प्लांट्स पर जुर्माना वैध: कोर्ट ने कहा कि कैप्टिव पावर प्लांट्स पर जुर्माना भेदभावपूर्ण नहीं है, बल्कि सभी उपभोक्ताओं पर समान रूप से लागू होता है। मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं: अदालत ने स्पष्ट किया कि ओपन एक्सेस उपभोक्ताओं को नियमों के तहत नियंत्रित किया जा सकता है और यह किसी मौलिक अधिकार का हनन नहीं करता।