डीलर का मार्जिन जुड़ा, उपभोक्ता का भरोसा टूटा?
फर्मों की ओर से दी गई दरों में राशन डीलर्स के लिए 5 से 10 प्रतिशत मार्जिन शामिल किया गया है। यह मार्जिन डीलर्स की आय बढ़ाने के उद्देश्य से जोड़ा गया, लेकिन इससे कुल दरों में अंतर इतना बढ़ गया कि भंडार की सामग्री बाजार से अधिक महंगी हो गई। खाद्य विभाग के अफसरों का तर्क है कि डीलर को लाभ तभी मिलेगा जब उपभोक्ता भंडार से खरीद करेगा लेकिन जब कीमत ही अधिक होगी, तो ग्राहक आएगा क्यों?
2015 में भी महंगे दाम की वजह से हुई थी योजना विफल
राज्य सरकार ने 2015 में भी 5 हजार अन्नपूर्णा भंडार खोलकर राशन डीलर्स की आमदनी बढ़ाने की पहल की थी। उस समय भी इन भंडारों पर दैनिक उपयोग की खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति एक बड़े कॉरपोरेट समूह को दी गई थी। राशन डीलर्स के अनुसार, उस वक्त भी खाद्य सामग्री की दरें स्थानीय बाजार से अधिक थीं, और आपूर्तिकर्ता समूह की ओर से विशेष ब्रांड की बिक्री का दबाव बनाया जाता था। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति सीमित होती है, वहां महंगे ब्रांड की वस्तुएं बेचना संभव नहीं था। इसके चलते अधिकांश डीलरों को 3 से 4 लाख रुपए तक का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था। अब जब 2025 में फिर से वही मॉडल बिना व्यापक समीक्षा और बाजार सर्वे के दोहराया जा रहा है, तो भविष्य की आशंका 2015 की विफलता की छाया तले खड़ी दिखाई दे रही है।खाद्य सामग्री की दरें हर हाल में हों कम
अन्नपूर्णा भंडारों पर रखी जाने वाली खाद्य सामग्री की दरें बाजार या उससे कम दर पर तय होनी चाहिए, जिससे उपभोक्ता इन भंडारों से सस्ती सामग्री खरीदने आएं। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो इस योजना का हाल भी 2015 जैसा होगा।-डिंपल शर्मा, अध्यक्ष, अखिल राजस्थान उचित मूल्य दुकानदार संघ
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इनका कहना है
अभी तीन फर्मों ने अपनी दरें दी हैं और गुणवत्ता के आधार पर कुछ वस्तुओं की कीमत में अंतर स्वाभाविक हो सकता है। लेकिन हमारी कोशिश है कि उपभोक्ताओं को अन्नपूर्णा भंडारों पर कम से कम कीमत पर ब्रांडेड खाद्य सामग्री मिले। इसी उद्देश्य से अब कुछ अतिरिक्त फर्मों को भी आमंत्रित किया जा रहा है, ताकि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के माध्यम से दरें घटें और उपभोक्ताओं को लाभ मिले। साथ ही, इससे राशन डीलर्स की आय में भी बढ़ोतरी सुनिश्चित की जा सकेगी।-राजेन्द्र कुमार वर्मा, प्रबंध निदेशक, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम