इधर, इस विवाद के बीच बोर्ड के सीनियर असिस्टेंट डायरेक्टर दिनेश कुमार ओझा को प्रशासनिक आधार पर हटाकर (APO) उनका तबादला शिक्षा निदेशालय, बीकानेर कर दिया गया है। बताते चलें कि राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल ने नए सत्र-2025 के लिए 4.90 लाख किताबें छपवाई थीं, जो 19,700 स्कूलों में वितरित की जानी थीं। इनमें से करीब 80% किताबें स्कूलों में पहुंच चुकी हैं। अब इन किताबों को वापस लेने और वितरण रोकने का फैसला लिया गया है, जिसे लेकर विपक्ष ने सरकार पर शिक्षा व्यवस्था में वैचारिक हस्तक्षेप का आरोप लगाया है।
पुस्तक में क्या है विवाद?
दरअसल, इस किताब में गांधी-नेहरू परिवार और कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्रियों पर विस्तृत सामग्री छापी गई है। वहीं, पिछले 11 वर्षों से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के योगदान को नजरअंदाज करने का आरोप लगा है। इस असंतुलन को लेकर शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने बोर्ड के अधिकारियों से नाराजगी जताई है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि पैसे बर्बाद हों तो हों, लेकिन बच्चों को गलत जानकारी या जहर नहीं परोसा जाएगा। सरकार ने इस पुस्तक को स्कूलों में पढ़ाने पर रोक लगा दी है।
बोर्ड में डेपुटेशन पर थे ओझा
दिनेश ओझा का पक्षदिनेश कुमार ओझा बोर्ड में डेपुटेशन पर थे। उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया देते कहा कि यह पुस्तक सरकार की अनुमति से छपी थी। यह पिछले वर्षों की तरह ही है और 2026-27 में सिलेबस संशोधन होना है। मुझे हटाने का कारण स्पष्ट नहीं किया गया। ओझा ने इस कार्रवाई पर निराशा जताई, लेकिन आगे कुछ कहने से इनकार कर दिया। वहीं, बोर्ड सचिव कैलाश चंद्र शर्मा ने बताया कि ओझा का तबादला शिक्षा निदेशालय, बीकानेर कर दिया गया है। इससे पहले, डेढ़ महीने पहले एकेडमिक निदेशक राकेश स्वामी को भी APO कर हटाया गया था।
शिक्षामंत्री ने दिखाया सख्त रुख
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने पुस्तक में कांग्रेस नेताओं के ‘गुणगान’ पर आपत्ति जताते हुए कहा कि बच्चों को गलत जानकारी नहीं दी जाएगी। उन्होंने किताबों के वितरण पर रोक लगाने का निर्णय लिया, भले ही इससे आर्थिक नुकसान हो। दिलावर ने स्पष्ट किया कि सरकार ऐसी सामग्री को बर्दाश्त नहीं करेगी, जो एकतरफा दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हो।
मंत्री पर कांग्रेस का पलटवार
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने सरकार के इस कदम को ‘शिक्षा पर वैचारिक प्रहार’ करार दिया। उन्होंने कहा कि नेहरू, इंदिरा, राजीव और मनमोहन सिंह जैसे नेताओं के योगदान को इतिहास से मिटाया नहीं जा सकता। ये किताबें उनके कार्यकाल के अमिट योगदान को दर्शाती हैं। क्या सरकार बच्चों से सच्चाई और इतिहास छिपाना चाहती है? डोटासरा ने सरकार पर इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने का आरोप लगाया।