बैठक की अध्यक्षता करते हुए दिया कुमारी ने पर्यटन विभाग, पुरातत्व विभाग और संग्रहालय विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि राज्य भर की बावड़ियों की स्थिति का आकलन कर पुनरुद्धार की दिशा में ठोस योजना बनाई जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल संरचना का संरक्षण ही नहीं, बल्कि बावड़ियों के पानी के आगमन मार्गों की मरम्मत, डिसिल्टिंग (गाद हटाने) और कचरा साफ करने जैसे तकनीकी पहलुओं को भी प्राथमिकता दी जाए।
इन धरोहरों का संरक्षण केवल पर्यटक आकर्षण के रूप में ही नहीं, बल्कि पारंपरिक जलसंरक्षण प्रणालियों के पुनर्जीवन के रूप में देखा जाना चाहिए। साथ ही निर्देश दिए कि कार्यों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए हेरिटेज प्रकृति के कार्यों को अनुभवी हेरिटेज कंसल्टेंट्स के मार्गदर्शन में ही कराया जाए।
संरक्षण के इस पहल से उम्मीद है कि राजस्थान की ऐतिहासिक बावड़ियां जो कभी जल संरक्षण और सामाजिक मेलजोल का केन्द्र रही हैं, एक बार फिर से जीवंत हो सकेंगी और विश्व धरोहर के रूप में अपनी पहचान बना सकेंगी।