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जयपुर

बीमा कंपनियों की मनमानी, मरीजों पर पड़ रही भारी: नियमों की आड़ में क्लेम राशि में की जाती है भारी कटौती

Insurance Coverage: वादे के बावजूद कैशलेस क्लेम को स्वीकार करने के मामले में निजी बीमा कंपनियां बिल का 100 प्रतिशत तक भुगतान नहीं करती है।

जयपुरDec 15, 2024 / 01:10 pm

Suman Saurabh

insurance companies in india promises of 100% cashless insurance, up to 41% reduction is being made in medical claims

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जयपुर। भारत अब दुनिया का छठे नंबर का बीमा बाजार बन चुका है। राजस्थान की करीब 80 प्रतिशत जनता बीमा कवरेज के दायरे में है। इनमें सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं सहित आमजन का निजी बीमा भी शामिल है। वहीं, वादे के बावजूद कैशलेस क्लेम को स्वीकार करने के मामले में निजी बीमा कंपनियां बिल का 100 प्रतिशत तक भुगतान नहीं करती है।
नियम कायदों के मकड़जाल में उपभोक्ता भी खुद को असहाय महसूस करता है। बीमा के बावजूद इलाज के बदले मरीजों को अपनी जेब से पैसा चुकाना पड़ता है। इधर, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां 84 से 95 प्रतिशत तक क्लेम सेटलमेंट करती हैं। इसकी तुलना में निजी कंपनियों का क्लेम सेटलमेंट अनुपात 58 से 91 प्रतिशत तक ही है।
इसी तरह क्लेम राशि के निस्तारण में सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियां 73 से 98 प्रतिशत तक क्लेम राशि उपभोक्ता को देती है। निजी कंपनियां 63 से 88 प्रतिशत तक ही बीमा क्लेम राशि दे रही है। नियमों की आड़ में राशि रोक दी जाती है। इसकी जानकारी बीमा के समय मरीजों को विस्तृत तौर पर नहीं दी जाती।
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सरकारी कंपनियों पर अधिक भरोसा

स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में बीमा प्रदाता कंपनियों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा है। इसमें मुख्य मुकाबला सार्वजनिक क्षेत्र यानी सरकारी कंपनियों और निजी कंपनियों के बीच है। हालांकि इससे उपभोक्ताओं के पास स्वास्थ्य बीमा के ज्यादा विकल्प हैं। सभी कंपनियां आसान क्लेम सेटलमेंट का दावा करती हैं, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि अभी भी स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों पर उपभोक्ताओं का भरोसा कायम है। इसलिए देश के बीमा बाजार में 60 प्रतिशत हिस्सेदारी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की है।

10 लाख का बीमा, 8 लाख भुगतान

जयपुर में वसुंधरा कॉलोनी निवासी हरीश शर्मा ने निजी कंपनी से 10 लाख का कैशलेस बीमा कराया, लेकिन कंपनी ने क्लेम 8 लाख से ज्यादा नहीं दिया। कंपनी ने कई शर्तें जोड़ दी। जिसकी जानकारी पॉलिसी लेते वक्त नहीं थी। दूसरे उपभोक्ता की पत्नी के चिकित्सकीय पर्चे पर डॉक्टर ने गलती से ब्लीडिंग के लिए एक माह के स्थान पर एक वर्ष लिख दिया। इस पर निजी कंपनी ने उसका क्लेम रोक दिया।

नियमों की आड़

कुछ निजी बीमा कंपनियों का नाम सुनकर कई डॉक्टर इलाज से बचते हैं। इनका कहना है कि ये कंपनियां नियम कायदे बताकर क्लेम अटकाती हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

निजी कंपनियां बैलेंस शीट में प्रॉफिट के लिए काम करती हैं। भारी-भरकम प्रीमियम लेने के बाद भी क्लेम सेटेलमेंट में ज्यादा से ज्यादा फिल्टर लगाए जाते हैं। इसलिए उपभोक्ता स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में ज्यादा भरोसा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों पर ही करते हैं। सुरेंद्र शर्मा, बीमा विशेषज्ञ

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