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जयपुर : बर्बादी की ‘तस्वीर’ बना चंदलाई डेम, लाखों की लागत… अब खंडहर में तब्दील

Chandlai Dam: चंदलाई डेम आज विकास की विफल योजनाओं का एक जीता-जागता उदाहरण बन चुका है। जिस पर्यटन स्थल को संवारे जाने पर सरकारी फंड से लाखों खर्च किए गए, वह आज वीरानी की तस्वीर पेश कर रहा है।

जयपुरMay 22, 2025 / 02:50 pm

SAVITA VYAS

जयपुर जिले के चाकसू उपखंड में स्थित चंदलाई डेम, जिसे लाखों रुपए खर्च कर एक खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया था, आज अनदेखी और उपेक्षा के चलते बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है।
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जयपुर जिले के चाकसू उपखंड में स्थित चंदलाई डेम, जिसे लाखों रुपए खर्च कर एक खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया था, आज अनदेखी और उपेक्षा के चलते बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है।
कभी झील के किनारे बना आकर्षक पार्क, बैठने की सुंदर जगहें और पाथवे अब असामाजिक तत्वों की तोड़-फोड़ का शिकार हो चुके हैं।
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कभी झील के किनारे बना आकर्षक पार्क, बैठने की सुंदर जगहें और पाथवे अब असामाजिक तत्वों की तोड़-फोड़ का शिकार हो चुके हैं।
 डेम के आसपास फैली गंदगी, टूटी फेंसिंग और उजड़ता सौंदर्य इस बात का सबूत है कि प्रशासन की नजरें इस ओर से हट चुकी हैं।
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डेम के आसपास फैली गंदगी, टूटी फेंसिंग और उजड़ता सौंदर्य इस बात का सबूत है कि प्रशासन की नजरें इस ओर से हट चुकी हैं।
डेम की हालत देखकर बदहाली का अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकार द्वारा करोड़ों की योजनाओं के दावे तो खूब होते हैं, लेकिन स्थानीय धरोहरों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
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डेम की हालत देखकर बदहाली का अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकार द्वारा करोड़ों की योजनाओं के दावे तो खूब होते हैं, लेकिन स्थानीय धरोहरों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
 चंदलाई डेम जैसे शांत प्राकृतिक स्थलों की अनदेखी न केवल पर्यटन को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि पर्यावरण संतुलन पर भी असर डाल रही है।
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चंदलाई डेम जैसे शांत प्राकृतिक स्थलों की अनदेखी न केवल पर्यटन को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि पर्यावरण संतुलन पर भी असर डाल रही है।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि लाखों रुपए खर्च होने के बावजूद किसी भी स्थायी व्यवस्था या रखरखाव योजना की कोई झलक नहीं दिखती। चंदलाई डेम आज सवाल कर रहा है — क्या विकास सिर्फ पत्थरों पर नाम लिखवाने तक सीमित रह गया है?
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सबसे बड़ी विडंबना यह है कि लाखों रुपए खर्च होने के बावजूद किसी भी स्थायी व्यवस्था या रखरखाव योजना की कोई झलक नहीं दिखती। चंदलाई डेम आज सवाल कर रहा है — क्या विकास सिर्फ पत्थरों पर नाम लिखवाने तक सीमित रह गया है?

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