जीएसटी और टैक्स ने जयपुर के पतंग कारोबारियों की कमर तोड़कर रख दी है। पतंग व्यापारियों की मानें तो कागज पर पहले से ही 12 प्रतिशत टैक्स लगा हुआ है, इसके अलावा 5 प्रतिशत जीएसटी ने पतंग कारोबार की हालत पतली कर दी है। कारोबारी दूसरे व्यापार तलाश रहे हैं और कारीगर दूसरे धंधे सीख रहे हैं। बाजार की हालत ये हो गई है कि सीजन का कारोबार रह गया है और उस पर भी यूपी और दिल्ली से आने वाले कारोबारी कब्जा रहे हैं। महंगाई और अन्य कारणों से पतंगबाजी बीस प्रतिशत तक महंगी हो गई है।
एफसीआई से रिटायर अब्दुल गफ्फार बताते हैं कि वे पचास साल से पतंग बना रहे हैं । उनके पिता भी एफसीआई में थे और दादा भी अच्छी पतंगबाजी के साथ पतंग भी बनाते थे। गफ्फार ने बताया कि हमारे जैसे कई परिवार थे जो पतंग बनाते थे। करीब डेढ़ सौ साल पुराना इतिहास है पतंगबाजी का। उस समय राजा कपड़े की पतंग बनवाकर उड़ाते थे जिसे तुक्कल कहते थे। लूटने वाले को इनाम दिया जाता था। ये शौक वे अवध से लाए थे। उसके बाद हांडीपुरा बाजार बसा, पतंगबाजी का काम होने लगा, लेकिन अब हालत पतली है। पूरे देश में बाजार का नाम है लेकिन अगर सरकारी योजनाओं की जानकारी इन व्यापारियों तक पहुंच सके तो गुलाबी नगरी का पतंग उद्योग फिर से नई ऊंचाईयां छू सकता है।
गफ्फार बताते हैं मेरी जैसी पतंगे किसी दूसरे शहर में तो क्या दुनिया में ही कोई नहीं बनाता। इन्हें उड़ाना भी आसान नहीं है। मैने माइकल जैक्सन से लेकर माइकर शुमाकर तक , पीएम मोदी से लेकर भैरोंसिंह शेखावत तक, सबकी आदमकद पतंगे बनाई हैं। लेकिन हमे इन्हें बेचते नहीं हैं। खरीदने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। नेता, अभिनेता, खिलाडियों की पतंगे बनाते हैं, लेकिन अपने पास ही रखते हैं। पांच-पांच हजार रूपए तक एक पतंग के देने के लिए लोग आते हैं, लेकिन हम देते नहीं हैं। डर रहता है कि कहीं नेता या खिलाड़ी की पतंग का कोई मिस यूज ना कर दे, कहीं कोई कीचड़ में ना फेंक दे, कहीं कोई बेईज्जती नहीं कर दे। इसलिए इन पतंगों को बेचते ही नहीं हैं। बनाने का शौक है, बस बनाते हैं और सेफ रखते हैं।