सांसद बेनीवाल ने लोकसभा के बजट सत्र में सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के निर्देशों की अवहेलना कर होटल मालिकों और खनन संचालकों को फायदा पहुंचाने के लिए अभ्यारणों के नक्शे बदलने के गंभीर आरोप लगाए थे। इस मुद्दे को उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के जवाब के साथ साझा किया है।
जंगलो में हो रहे खेल को किया उजागर
राजस्थान के अलवर में स्थित सरिस्का और जयपुर स्थित नाहरगढ़ अभयारण्य क्षेत्रो का नक्शा बदलकर होटल मालिकों, माइंस संचालकों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से अधिकारियों द्वारा सत्ता के संरक्षण में जो खेल शुरू किया गया, उसके संदर्भ में मैंने बजट सत्र के समय लोक सभा में मुद्दा उठाते हुए वन तथा वन्य जीवों के संरक्षण की मांग उठाई थी, चूंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के निर्देशों के बावजूद इन अभ्यारणों के इको सेंसेटिव जॉन में कमर्शियल गतिविधियाँ संचालित हो रही है लेकिन राजस्थान की सरकार और जिम्मेदार अधिकारी केवल नोटिस देकर इतिश्री कर लेते है। अलवर के सिलिसेढ एरिया में एक दर्जन से अधिक होटले और अजबगढ़-जमवारामगढ़ रेंज में भी एक दर्जन से अधिक होटले चल रही है जो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और निर्देशों की जमकर अवहेलना कर रहे है, लोक सभा में उठाई गई मेरी इस मांग पर केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने मुझे पत्र भेजकर यह अवगत करवाया है कि भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राजस्थान सरकार के वन विभाग के ACS से इस मामले में पूरी रिपोर्ट मांगी है और आवश्यक निर्देश भी राजस्थान सरकार को दिए है।
सीएम भजनलाल शर्मा से की ये मांग
मेरी प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मांग है कि इस मामले में संज्ञान लेकर राजस्थान के दोनों अभ्यारण क्षेत्र को बचाने के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र में संचालित कमर्शियल गतिविधियों को बंद किया जाए और उनके खिलाफ आर्थिक दंड लगाये और आपराधिक मुकदमा दर्ज करवाया जाए। साथ ही उद्योगपतियों व खनन माफियाओं को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से राजस्थान के अलवर में स्थित सरिस्का और जयपुर स्थित नाहरगढ़ अभयारण्य क्षेत्रों का नक्शा नहीं बदला जाये।
डोल का बाढ़ का भी उठाया मुद्दा
इन दोनों मुद्दों के साथ मेरी राजस्थान सरकार से मांग है कि दक्षिणी जयपुर के डोल का बाढ़ क्षेत्र में प्रस्तावित पीएम यूनिटी मॉल के लिए लगभग 2500 पेड़ों की कटाई के विरोध में लोग आंदोलन कर रहे हैं, यह आंदोलन प्रकृति के संरक्षण को लेकर किया जा रहा है इसलिए डोल के बाढ़ का संरक्षण किया जाए और यहां प्रस्तावित परियोजना के नाम पर पेड़ो को नहीं काटा जाए। पर्यावरण एवं प्रकृति को बचाने के लिए हमें हर संभव प्रयास करने की जरूरत है।