नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन विभाग को प्रदेश के बड़े शहरों से जो शुरुआती जानकारी मिली है, उसमें कम्पाउंडिंग के दायरे में वाली करीब सात लाख प्रॉपर्टी है। सरकार का मानना है कि अब इन्हें वापिस मूल स्वरूप नहीं ला सकते हैं, लेकिन भविष्य में कोर्ट के आदेश के अनुसार ही काम होगा। गंभीर यह है कि मास्टरप्लान की पालना को लेकर हाईकोर्ट ने पहले 2017 और 2019 में विस्तृत आदेश दिए थे, लेकिन उसकी पालना नहीं हो रही।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ के न्यायाधीश परदीवाला व आर माधव ने 17 दिसंबर,2024 को सरकारों को आदेश दिए थे कि वे सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के अनुसार लोकल अथॉरिटी और कॉरपोरेशन को परिपत्र जारी करें। वे सुनिश्चित करें कि कहीं भी अवैध निर्माण, आवासीय कॉलोनी में व्यवसायिक निर्माण और मास्टरप्लान व जोनल प्लान के विपरीत निर्माण हो रहे हैं तो उन्हें तुरंत रोकें। नियमानुसार भवन निर्माण के बाद ही बिजली, पानी व सीवरेज के कनेक्शन दिए जाएं।
हाईकोर्ट पहले ये दे चुका आदेश
1. निर्धारित प्लान के विपरीत निर्माण की अनुमति नहीं दी जाए। भवन विनियमों की सख्ती से पालना की जाए।
2. सेटबैक सहित भवन विनियम के प्रावधानों की अनदेखी कर किए गए निर्माण को कम्पाउंड नहीं किया जाए।
सरकार चाहती है इन पर राहत
1. इकोलोजिकल जोन की 200 किमी. जमीन से जुड़ा है। यहां भूमि पर आबादी बस चुकी है। इसमें राजधानी जयपुर के इकोलोजिकल हिस्से में ही दो लाख से ज्यादा आबादी बसी है।
2. प्रदेश में 25 किलोमीटर खुली भूमि पर भी सरकारी अनुमति से आबादी बस चुकी है। अफसरों का झूठ, कार्रवाई में मनमानी
मास्टर प्लान और बिल्डिंग बायलॉज के विपरीत निर्माण मामले में सरकार की पोल भी खुलती रही है। सुप्रीम कोर्ट में भेजी जा चुकी रिपोर्ट में साफ अंकित है कि राज्य में करीब 7 से 8 लाख से ज्यादा निर्माण ऐसे हैं जो अवैध हैं, लेकिन अब इन्हें ध्वस्त नहीं किया सकता है क्योंकि ज्यादातर में आजीविका के संसाधन भी संचालित हो रहे हैं। लेकिन राज्यभर में ऐसे निर्माण को ध्वस्त व सील करने के लिए ’पिक एन्ड चूज’ का खेल चल रहा है। सरकार के इसी दौहरे रवैये के कारण कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं।
पेनल्टी लेकर वैध करने की गली
निकाय, प्राधिकरण, यूआइटी हाईकोर्ट के आदेश से पहले भी पेनल्टी लेकर अवैध हिस्से को वैध करते रहे हैं। इससे अवैध निर्माणकर्ताओं के हौसले बढ़ गए थे।