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जयपुर

सफेद दाग से जूझ रहा राजस्थान, 5% आबादी प्रभावित, तनाव और वंशानुगत कारण जिम्मेदार!

राजस्थान में पांच प्रतिशत लोग त्वचा पर सफेद दाग और धब्बों से पीड़ित हैं। यह समस्या 20 से 30 प्रतिशत लोगों में वंशानुगत कारण के चलते होता है। हालांकि, मानसिक तनाव भी इसका एक कारण हैं।

जयपुरJun 25, 2025 / 08:30 am

Arvind Rao

Rajasthan Vitiligo

राजस्थान में सफेद दाग की समस्या (पत्रिका फाइल फोटो)

जयपुर: त्वचा पर सफेद दाग से सौंदर्य को प्रभावित करने वाले त्वचा रोग विटिलिगो के मरीजों की संख्या राजस्थान में कुल आबादी के लगभग पांच प्रतिशत तक पहुंच गई है। चिंता की बात यह है कि राज्य में यह आंकड़ा राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना है।

विश्व स्तर पर जहां विटिलिगो की दर 0.5 से 2 प्रतिशत, भारत में 1 से 3 प्रतिशत है। वहीं, राजस्थान में यह लगभग 5 प्रतिशत पाई गई है। यह रोग पुरुषों और महिलाओं दोनों में समान रूप से देखा जा रहा है।

इसकी शुरुआत 10 से 30 वर्ष की आयु में होती है, जबकि बच्चों में भी 20 से 25 प्रतिशत मामलों में यह पाया गया है। करीब 20 से 30 प्रतिशत मामलों में विटिलिगो का कारण पारिवारिक इतिहास होता है। इसके अलावा ऑटो इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी, मानसिक तनाव, त्वचा पर चोट या जलन भी इसके विकास के प्रमुख कारण हैं।
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क्या कहना है डॉक्टर का


त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश माथुर के अनुसार, विटिलिगो केवल एक सौंदर्यगत विकार नहीं है, बल्कि इससे जुड़ी मानसिक, सामाजिक और आत्म-समान से संबंधित समस्याएं भी अत्यंत गंभीर होती हैं। इस रोग में त्वचा की रंगद्रव्य बनाने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, जिससे त्वचा पर सफेद धब्बे उभर आते हैं।

डॉ. दिनेश माथुर ने बताया, यह रोग संक्रामक नहीं होता, लेकिन इसका मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव बहुत गहरा होता है। इसके उपचार के लिए सर्जरी, ग्राटिंग, कॉस्मेटिक उपचार और दवाइयां उपलब्ध हैं।

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इस तरह नजर आते हैं लक्षण


-त्वचा पर स्पष्ट सफेद धब्बों का उभरना
-बालों का सफेद हो जाना
-अंदरूनी अंगों की झिल्लियों पर प्रभाव दिखाई देना


वर्ल्ड विटिलिगो डे आज


वर्ल्ड विटिलिगो डे (World Vitiligo Day) हर साल 25 जून को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विटिलिगो (सफेद दाग) से पीड़ित लोगों के प्रति जागरूकता फैलाना, भेदभाव को समाप्त करना और सामाजिक स्वीकृति को बढ़ावा देना है।


विटिलिगो क्या है?


यह एक त्वचा रोग है, जिसमें शरीर के कुछ हिस्सों में त्वचा का रंग उड़ जाता है और सफेद चकत्ते बन जाते हैं। यह रोग संक्रामक नहीं होता, लेकिन सामाजिक भ्रांतियों के कारण पीड़ितों को मानसिक तनाव और भेदभाव झेलना पड़ता है।

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