कार्यक्रम की शुरुआत जैसलमेर के प्रसिद्ध लोक कलाकार तगाराम भील के अलगोजा वादन से हुई। उनके साथ 13 सदस्यीय दल ने मंच संभालते ही दर्शकों को थार के सुरमयी रेगिस्तान की यात्रा पर ले जाया। कार्यक्रम में मोरचंग, रावणहत्था, कामायचा, खड़ताल, नाद, ढोलक और मटकी जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों के मधुर स्वर सुनकर दर्शक भावविभोर हो उठे।
तगाराम भील ने यह कला अपने पिता टोपणराम से सीखी थी। बाल्यकाल में ही उन्होंने चोरी-छुपे अलगोजा बजाना शुरू किया था और आज वह इस लोक वाद्य को दुनिया के 35 से अधिक देशों में प्रस्तुत कर चुके हैं। उनकी प्रस्तुति केवल एक संगीत अनुभव नहीं, बल्कि राजस्थानी विरासत का जीवंत प्रदर्शन भी थी।
कार्यक्रम में एक बाल कलाकार द्वारा दी गई गायन प्रस्तुति ने भी दर्शकों का विशेष ध्यान आकर्षित किया। उस नन्हे कलाकार की सुरीली आवाज़ ने बड़े-बड़े गायकों को मात दे दी और दर्शकों की आंखें नम कर दीं। जैसे-जैसे कार्यक्रम आगे बढ़ा, लोकगीतों “धरती धोरा री”, “केसरिया बालम” और “लेता जाइजो रो…” ने समा बांध दिया।
समापन पर कालबेलिया नृत्य ने दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर दिया। उनके लचीले और तेज़ लयबद्ध आंदोलनों ने नृत्य की उस शैली का ऐसा जादू बिखेरा कि दर्शकों की तालियों से पूरा परिसर गूंज उठा।
कार्यक्रम में न केवल घरेलू दर्शकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, बल्कि बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटकों ने भी उपस्थित रहकर राजस्थानी लोक संस्कृति की विविधता और समृद्धता का अनुभव किया।
शनिवार को भी रहेगा उत्सव का रंग
‘कल्चर डायरीज’ की अगली कड़ी शनिवार, 19 अप्रैल को आयोजित होगी, जिसमें उदयपुर के धरोहर संस्थान द्वारा चरी, घूमर, भवई, तेहर ताली, गवरी और मयूर नृत्य की प्रस्तुतियां दी जाएंगी। ये सभी नृत्य राजस्थान की अलग-अलग क्षेत्रीय परंपराओं को दर्शाते हैं और इनसे जुड़े कलाकारों का समर्पण देखने लायक होता है।
उपमुख्यमंत्री की सराहनीय पहल
इस संपूर्ण आयोजन का श्रेय उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी को जाता है, जिन्होंने न केवल इस श्रृंखला की परिकल्पना की, बल्कि इसे निरंतर जारी रखने की दिशा में भी ठोस प्रयास किए हैं। यह पहल न केवल लोक कलाकारों को मंच देती है, बल्कि जयपुर आने वाले पर्यटकों को भी संस्कृति से जोड़ने का काम करती है। साथ ही यह आयोजन नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़े रखने में भी सहायक सिद्ध हो रहा है।