जीवनशैली जो सिखाती है संतुलन
दोनों सरहदी जिलों के लोग सुबह सूरज के साथ उठते हैं और जीवन को साधारण ढंग से, पर पूरी गरिमा के साथ जीते हैं। खानपान में साधारणता, पहनावे में परंपरा और व्यवहार में अतिथि सत्कार झलकता है। मिट्टी के घर, ऊंट की सवारी और पीले पत्थरों से बने हवेलियां यहां की पहचान हैं। नहरी क्षेत्र निवासी कमलेश पुरोहित कहते हैं कि रेत का रंग आंखों को चुभता नहीं, वो दिल को शांति देता है। हम रेत में भी खेती करना जानते हैं और उम्मीद उगाना भी।
पानी की बूंद-बूंद का मोल
यहां हर घर में टांके हैं, जिनमें बारिश का पानी संजोया जाता है। जल संरक्षण यहां कोई नया विचार नहीं, बल्कि पीढिय़ों से चलता आ रहा अभ्यास है। बाड़मेर निवासी नगीनाराम सुथार, कहते हैं कि हम पानी को उतनी ही अहमियत देते हैं जितनी लोग धन को देते हैं। यह हमारी जीवनरेखा है।
महिलाएं—सहनशीलता और शक्ति का प्रतीक
मरु प्रदेश की महिलाओं की दिनचर्या सूरज के उगने से पहले शुरू होती है। मवेशियों की देखरेख, चूल्हे पर खाना, बच्चों की पढ़ाई और खेतों की जिम्मेदारी—सभी कुछ वे बिना शिकायत निभाती हैं। पोकरण क्षेत्र निवासी संतोष कंवर गृहिणी हैं, वो बताती है कि हमने कभी हालात से हारना नहीं सीखा। धूप में रहना आदत बन गई है और संघर्ष में जीना भी।
बच्चों को भी सिखाया जाता है सादगी का पाठ
यहां के बच्चे छोटे से ही यह समझ जाते हैं कि कैसे कम साधनों में ज्यादा खुशी ढूंढी जाती है। उनके खेल मिट्टी में, दोस्ती नीम के पेड़ के नीचे और सपने खुले आसमान में पलते हैं। यहां का लोकसंगीत, नृत्य, पहनावा और बोली मरुस्थल को भी झूमने पर मजबूर कर देते हैं। मांगणियारों और लंगा कलाकारों की धुनों में रेत भी सुर में बहने लगती है। लोक कलाकार रहीम खान कहते हैं कि हमारे गीतों में रेत, ऊंट, चांदनी रातें और संघर्ष की कहानियां छिपी हैं। यही तो हमारा जीवन है।
सादगी ही जीवन की सुंदरता
रंगकर्मी विजय बल्लाणी बताते हैं कि जैसलमेर-बाड़मेर के लोग दिखाते हैं कि कम संसाधनों में भी गरिमापूर्ण जीवन कैसे जिया जा सकता है। यहां संघर्ष रोज़ का हिस्सा है, लेकिन शिकवा नहीं, सिर्फ आत्मगौरव है।