राजस्थान हाईकोर्ट ने संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी घोटाले में दर्ज मामलों को लेकर जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने सरकार को एक अंतिम अवसर देते हुए एक स्पष्ट रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं कि कितने मामलों में अनियमित जमा योजना प्रतिबंध अधिनियम, 2019 (बड्स एक्ट) के तहत जांच होगी और कितने मामलों में भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मामला चलेगा।
न्यायाधीश फरजंद अली की एकल पीठ में देवी सिंह सहित अन्य आरोपियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता धीरेंद्र सिंह दासपा सहित अन्य अधिवक्ताओं ने बड्स एक्ट और भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज मामलों को चुनौती देते हुए दलीलें दी। सुनवाई के दौरान पीठ ने अभियोजन पक्ष से पूछा कि क्या मामलों में बड्स एक्ट लागू होता है या नहीं? इस पर अभियोजन पक्ष कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सका। इस पर नाराजगी जताते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर छह साल बाद भी जांच और अभियोजन एजेंसियों को यह स्पष्ट नहीं है कि इन मामलों में बड्स एक्ट लागू होता है या नहीं, तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।
7 अप्रेल को अगली सुनवाई
कोर्ट ने कहा कि यह दर्शाता है कि अधिकारियों ने व्यक्तियों की स्वतंत्रता के साथ मनमानी की है। पीठ ने जांच एजेंसी को अंतिम अवसर देते हुए निर्देश दिया कि वह स्पष्ट रिपोर्ट पेश करे कि कितने मामलों में बड्स एक्ट लागू होगा और कितने मामलों में केवल आइपीसी की धाराओं के तहत मुकदमा चलेगा।
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कोर्ट ने यह भी कहा कि अब तक अलग-अलग पुलिस इकाइयों की संलिप्तता का हवाला देकर बार-बार सुनवाई टालने का अनुरोध किया जा रहा है, जिसे अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यदि अब फिर से इस आधार पर समय मांगा जाता है तो गृह विभाग के प्रमुख सचिव और पुलिस महानिदेशक को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होना होगा। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 7 अप्रेल को निर्धारित की है और तब तक अंतरिम आदेश बरकरार रहेगा।