लगातार बढ़ रहा मौत का सिलसिला
बच्चों की मौत का सिलसिला जिले में लगातार बढ़ रहा है। 2019-20 में 1138 बच्चों ने दम तोड़ा था, जिसके बाद तीन साल तक संख्या एक हजार के नीचे थे। 2020-21 से क्रमश: 959, 747, 920 रही है। इसके बाद 2023-24 में 1221 व 2024-25 में आंकड़ा 227. 1 प्रतिशत के साथ 1342 पहुंच गई है।वर्ष गर्भवती/प्रसूता बच्चा 5 साल तक मौत
2014-15 21 741 20
2015-16 22 607 26
2016-17 34 561 25
2017-18 51 957 43
2018-19 47 998 45
2019-20 51 1138 48
2020-21 52 959 41
2021-22 48 747 37
2022-23 64 920 39
2023-24 62 1221 54
2024-25 52 1342 59
योग 504 9981 437
पांच साल के 437 बच्चे काल कलवित
जन्म लेने के पांच साल तक बच्चों को खतरा बना रहता है। अंडर-5 वर्ष तक 11 वर्ष में जिले में 437 बच्चे काल कलवित हो चुके हैं। हैरानी की बात तो यह है कि मौत का आंकड़ा कम होने की बजाय बढ़ा है। 2023-24 में 54 व 2024-25 में 59 बच्चों ने दम तोड़ा है।
504 प्रसूताओं के गले पड़ी मौत
जिले में गर्भवती व प्रसूताएं भी सुरक्षित नहीं हैं। 11 वर्ष में 504 प्रसूताओं ने बेपरवाही के चलते दम तोड़ दिया है। मां बनने की खुशी ने इनको मौत तक पहुंचा दिया है। हैरानी की बात तो यह है कि जिले में प्रसूताओं व गर्भवती महिलाओं के मौत का आंकड़ा कम होने की बजाय बढ़ रहा है। 2022-23 में 64, 2023-24 में 62 तो वहीं चालू वर्ष 2024-25 में अबतक 52 महिलाएं काल कलवित हो चुकी हैं।इन कारणों से मर रहे बच्चे
जिले में बच्चों के मौत की मुख्य वजह निमोनिया, इंफेक्शन, डिहाइड्रेशन, हाइ फीवर, सेप्सिस, बर्थ एक्सपेक्सिया, बच्चों को दूध पिलाने के बाद डकार न दिलाने के कारण मौत हो रही है। इसके लिए न तो स्वास्थ्य विभाग जागरुक हो रहा है और ना ही परिजन।महिलाओं के सेहत की अनदेखी
जिले में महिलाओं की सेहत के साथ बड़ी अनदेखी हो रही है। महिलाओं में पीपीएच, पीआइएच, एकलेम्सिया, कार्डियक अरेस्ट, एनीमिया, शॉक के कारण मौत हो रही है। मां बनने की खुशी में जान जा रही है। लापरवाही मातृ मृत्यु दर में घरों में लापरवाही होती है। लोग समय पर जांच नहीं कराते, जांच के बाद जो उपचार बताया जाता है वह परिजन इलाज नहीं कराते। 70 फीसदी महिलाओं में एनीमिया होता है, इससे गर्भवती महिलाओं की समस्या और भी बढ़ जाती है। कई प्रकार के साइड इफेक्ट होते हैं। इसी प्रकार स्वास्थ्य फील्ड लेवर पर समय पर सही जांच नहीं होती, काउंसलिंग नहीं हो पाती, जागरूकता की कमी बनी हुई है, निगरानी में भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
यह है मृत्यु का सूचकांक
जिले में मातृ मृत्यु दर व शिशु मृत्यु दर का सूचकांक प्रदेश व देश से काफी अधिक है। मातृ मृत्युदर में 2014-16 के एसआरएस रिपोर्ट में देश का प्रतिशत 171, प्रदेश का 130 रहा है जबकि कटनी में एएचएस सर्वे 2012-13 में 239 रहा है। इसी प्रकार शिशु मृत्युदर में प्रदेश व देश का एसआरएस रिपोर्ट 43-34 रही है, जबकि कटनी में 65 रही है। अभी हाल में एसआरएस रिपोर्ट जारी हुई है उसमें भी कटनी में बहुत ज्यादा सुधार नहीं है। हाल ही में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया द्वारा जारी एसआरएस बुलेटिन 2022 के सर्वे के अनुसार है जो चिंताजनक है।फैक्ट फाइल
- 72 पद डॉक्टरों के हैं जिसमें 52 पद खाली हैं, सिर्फ 16 ही दे रहे हैं सेवाएं।
- 8 चिकित्सकों का हाल में हो गया है स्थानांतरण, एक का भी नहीं पदस्थापना।
- 2 सिविल अस्पताल, 28 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 5 हैं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र।
- उप स्वास्थ्य केंद्रों में एएनएम पदस्थ नहीं हैं, कई पद खाली, नहीं हो रहीं नियुक्तियां।
- 20 से अधिक हैं एसएनसीयू में वॉर्मर, जहां बच्चों को बचाने होता है प्रयास।
- 2 से तीन बच्चे कर दिए जाते हैं गंभीर होने पर रैफर, वेंटीलेटर न होने समस्या।
- 15 से 20 महिलाएं प्रतिदिन पहुंचती हैं प्रसव के लिए जिला अस्पताल।
- 8 से 10 प्रसव कराए जाते हैं प्रतिदिन, कई बार 25 से 30 पैदा होते हैं बच्चे।
- 1 से 2 केस खून की कमी, हाइ रिस्क, ब्लड न होने के सामने आते हैं केस।
ऐसे रोकी जा सकती हैं बच्चों को मौतें
- गर्भवती महिलाओं की देखभाल हो और उन्हें भत्ता दिया जाए ताकि ये महिलाएं मजदूरी करने के लिए न जाएं और अपने खानपान पर ध्यान दे सकें।
- अगर बच्चा कमजोर पैदा होता है तो उसकी देखलाल के लिए जिले में कई सेंटर खोले जाएं, भर्ती करने की सुविधा ब्लॉक स्तर पर हो।
- प्रसव के 48 घंटे बाद सभी को घर भेज देते हैं, और ये दो किलो का बच्चा या तो घर में मर जाता या अस्पताल में, ठंड के मौसम में इन दो किलो के बच्चों को गर्म रखना पड़ता है। इसके लिए भर्ती की सुविधा ब्लॉक स्तर पर हो।
- आंगनबाड़ी को मजबूत करते हुए आशाओं द्वारा घर-घर जाकर नवजात की देखभाल सुनिश्चित हो, इसका एक मॉनिटरिंग सिस्टम हो।
- प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को मजबूत किया जाए वहां पर प्रशिक्षित डॉक्टरों की हर समय मौजूदगी के साथ-साथ भर्ती और नवजात की देखभाल की सुविधा हो।