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कोंडागांव

यहां लगती है देवी-देवताओं की अदालत, गलती पर मिलती है सजा, जज की भूमिका में रहती है भंगाराम देवी

Bhangaram Devi Darbar: क्या आप सोच सकते हैं कि भारत में एक ऐसा मंदिर भी है जहां देवी-देवताओं को अदालत में पेश किया जाता है और उन पर आरोप लगाए जाते हैं?

कोंडागांवJul 14, 2025 / 12:37 pm

Khyati Parihar

देवताओं की अदालत (फोटो सोर्स- पत्रिका)

देवताओं की अदालत (फोटो सोर्स- पत्रिका)

Bhangaram Devi Darbar: क्या आप सोच सकते हैं कि भारत में एक ऐसा मंदिर भी है जहां देवी-देवताओं को अदालत में पेश किया जाता है और उन पर आरोप लगाए जाते हैं? यह सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की केशकाल घाटी में स्थित भंगाराम देवी मंदिर में यह परंपरा आज भी जीवित है। यहां आस्था, न्याय और लोक परंपराएं इस अनोखे रूप में मिलती हैं कि देवी-देवताओं तक को जवाबदेह ठहराया जाता है। तो आइए, जानते हैं इस अनोखी परंपरा और इसके पीछे की कहानी।

Bhangaram Devi Darbar: अद्भुद है भंगाराम देवी मंदिर की अदालत

बस्तर की धरती पर आदिवासियों की आबादी 70 प्रतिशत है। यहां की जनजातियां – गोंड, मारिया, भतरा, हल्बा और धुरवा – न केवल अपने सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए हैं, बल्कि ऐसी अनोखी परंपराओं को भी निभाते हैं जो शायद कहीं और सुनने को न मिले। इनमें से एक है जन अदालत – एक अद्भुत परंपरा जहां हर साल भादो यात्रा के दौरान देवताओं पर मुकदमा चलाया जाता है। यह अदालत भंगाराम देवी मंदिर (Bhangaram Devi Darbar) में आयोजित होती है और तीन दिनों तक चलती है, जहां देवता खुद के ऊपर आरोपित मामलों की सुनवाई करते हैं।

मां भंगाराम की पूजा प्रारंभ

आपको बता दें कि अंचल की प्रमुख आराध्य देवी मां भंगाराम की सेवा पूजा परंपरा शनिवार से आरंभ हो गई है। प्राचीन परंपरा के अनुसार सात सप्ताह तक प्रत्येक शनिवार को विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी, जिसका समापन 23 अगस्त को भादों जातरा के रूप में होगा। पहले शनिवार को बड़ी संया में श्रद्धालु विभिन्न ग्रामों से मां के दरबार में पहुंचे और अपने गांव की ओर से सेवा अर्पित की।
मां भंगाराम का भादों जातरा केशकाल क्षेत्र में एक विशिष्ट सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन माना जाता है। जातरा न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि बस्तर की (Bhangaram Devi Darbar) सांस्कृतिक विरासत और देवी परंपराओं को जानने के लिए शोधकर्ताओं, साहित्यकारों और पत्रकारों के लिए भी विशेष आकर्षण का केंद्र है।

देवताओं का होता है महाकुंभ

इस दिन ग्रामीणजन अपने गांवों की समृद्धि, सुरक्षा और सुख-शांति की कामना करते हुए मनौती व चढ़ौती के साथ मां के दरबार में पहुंचते हैं। पूरे अंचल के नौ परगनों के देवी-देवता भी इस अवसर पर उपस्थित होते हैं, जिससे यह आयोजन देवी-देवताओं के महाकुंभ का रूप ले लेता है।

Bhangaram Devi Darbar: जातरा की विशेषताएं

इस आयोजन की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सावन मास से सेवा पूजा की शुरुआत होती है, जिसे देवी जागरण के रूप में भी जाना जाता है। छह शनिवार तक लगातार पूजा-अर्चना होती है और सातवें शनिवार को भव्य भादों जातरा का आयोजन किया जाता है।

देश-विदेश से पहुंचते हैं लोग

भंगाराम जातरा की अनोखी विशेषताओं के चलते अब यह आयोजन प्रदेश ही नहीं, देश और विदेश से भी लोगों को आकर्षित करने लगा है। अनुमान है कि इस वर्ष 23 अगस्त को होने वाले भादों जातरा में स्थानीय श्रद्धालुओं के साथ-साथ दूर-दराज से भारी संया में दर्शक और शोधार्थी भाग लेंगे।
देवताओं की अदालत (फोटो सोर्स- पत्रिका)

लगती है देवताओं की अदालत

जातरा के दूसरे दिन मां भंगाराम देवी के समक्ष देवताओं की अदालत लगाई जाती है, जिसमें उन देवी-देवताओं के खिलाफ लगे आरोपों की प्रतीकात्मक सुनवाई होती है। इस परंपरा को लेकर आम लोगों के बीच विशेष श्रद्धा है, वहीं यह परंपरा संस्कृति और लोक आस्था का अनूठा उदाहरण भी प्रस्तुत करती है।

दोषी देवताओं को मिलती है सजा

यहां तक कि देवता दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें सजा भी मिलती है और वह सजा होती है निर्वासन की। आमतौर पर देवताओं की जो मूर्तियाँ लकड़ी की बनी होती हैं, उन्हें मंदिर के भीतर से निकालकर मंदिर के पिछवाड़े भेज दिया जाता है। यह सजा अस्थायी भी हो सकती है या जीवनभर के लिए, जब तक देवता अपने “व्यवहार” में सुधार न करें। ग्रामीणों का विश्वास है कि यह प्रक्रिया देवी-देवताओं को उत्तरदायी और अनुशासित बनाए रखती है। सजा के बाद यदि कोई संकेत मिलता है कि देवता ने अपनी भूमिका सही निभाई है, तो उन्हें मंदिर में पुनः स्थापित किया जाता है।
देवताओं की अदालत (फोटो सोर्स- पत्रिका)

क्यों होती है ये अदालत?

इतिहासकार घनश्याम सिंह नाग इस परंपरा को देवताओं और मनुष्यों के बीच पारस्परिक संबंध का प्रतीक मानते हैं। अगर देवताओं ने अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन नहीं किया है, तो उन्हें भी दंडित किया जाता है। भंगाराम देवी मंदिर में देवताओं को सुधारने का एक अवसर भी दिया जाता है। अगर देवता अपने व्यवहार में सुधार कर लेते हैं और लोगों की प्रार्थनाओं का उत्तर देते हैं, तो उन्हें मंदिर में वापस आकर सम्मानित किया जाता है।

Bhangaram Devi Darbar: कितना पुराना है मंदिर?

इस प्राचीन मंदिर की स्थापना 1700-1800 ईस्वी में राजा भाईरामदेव के शासनकाल के दौरान हुई थी। बस्तर के आदिवासी मामलों के जानकार प्रोफेसर एम. अली एन. सैयद ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि बस्तर के आदिवासी गांवों में काफी विविधता है और वे एक ही देवी-देवताओं की पूजा नहीं करते। वे अपने खुद के देवता बनाते हैं। एक बेहद दिलचस्प बात और है कि अगर किसी भी देवता को गंगाराम देवी के द्वारा सजा सुनाई जाती है तो उस देवता की मूर्ति को सजा के रूप में मंदिर के पिछले हिस्से में छोड़ दिया जाता है।

अंतिम होता है भंगाराम देवी का फैसला

स्थानीय ग्रामीण इस बात पर भरोसा करते हैं कि भंगाराम देवी के द्वारा सुनाया जाने वाला फैसला अंतिम होता है और अगर उनके किसी देवी-देवता को सजा सुनाई जाती है तो ऐसे में ग्रामीण उस देवता को भुला देते हैं और देवता की मूर्ति को सजा के रूप में मंदिर के पिछले हिस्से में छोड़ दिया जाता है। भंगाराम देवी के मंदिर में केवल सजा ही नहीं मिलती बल्कि यहां पर देवी सुधार का भी मौका देती हैं। यह भी हैरान करने वाली बात है कि देवी-देवताओं को भी उनकी गलतियों के लिए सुधार करने का मौका दिया जाता है और अगर वह सुधार करते हैं तो उन्हें फिर से मंदिर में रख लिया जाता है।

Bhangaram Devi Darbar: बीमारी होने पर पूजे जाते हैं डॉक्टर खान

जानकार बताते हैं कि वर्षों पहले क्षेत्र में कोई डॉक्टर खान थे, जो बीमारों का इलाज पूरे सेवाभाव और नि:स्वार्थ रूप से करते थे। उनके नहीं रहने पर यहां के ग्रामीणों ने उन्हें देवता के रूप में स्वीकार कर लिया है, जो भंगाराम देवी मंदिर में विराजित हैं। क्षेत्र में किसी बीमारी का प्रकोप होने पर सबसे पहले इनकी ही पूजा की जाती है। डॉक्टर खान नागपुर से आए थे। खान डॉक्टर एक छड़ी के रूप में मंदिर में हैं।

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