इसमें तीन मरीज गंभीर है और वेंटीलेटर पर है। तीन मरीजों का इलाज राजधानी रायपुर के विभिन्न निजी अस्पतालों में चल रहा है। कमेटी के अनुसार बीमारी का इलाज महंगा है इसलिए इसे आयुष्मान भारत योजना के पैकेज में शामिल करना उचित होगा।
CG Exclusive News: यह दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल बीमारी
एक निजी
अस्पताल में 13 साल का विभव लकड़ा भर्ती है। 8 मार्च को खाना निगलने में परेशानी व सांस लेने में तकलीफ हुई। स्थानीय अस्पताल में भर्ती करने के बाद 18 मार्च को रायपुर लाया गया। जरूरी जांच में दोनों हाथ व पैर में वीकनेस व रिफ्लेक्स नहीं होना पाया गया। नर्व कंडक्शन स्टडी में जीबीएस की पुष्टि हुई।
मरीज अभी इम्यूनोग्लोबुलिन व वेंटीलेटर सपोर्ट पर है। एक अन्य निजी अस्पताल में 34 साल की आशा साहू का इलाज चल रहा है। डायरिया, बाएं हाथ में कमजोरी व सांस लेने की तकलीफ के बाद अस्पताल में भर्ती किया गया। यह मरीज भी इम्यूनोग्लोबुलिन व वेंटीलेटर सपोर्ट पर है। सीटी,
एमआरआई , सोनोग्राफी व इको टेस्ट में कुछ खास नहीं निकला। यानी मरीज जीबीएस से पीड़ित है।
16 साल की बालिका का इलाज आंबेडकर में, डिस्चार्ज भी
बैकुंठपुर जिले के ही 16 वर्षीय पूजा यादव का इलाज आंबेडकर अस्पताल में किया गया। स्वास्थ्य ठीक होने के बाद उन्हें डिस्चार्ज भी कर दिया गया है। खुटरापारा, कोचिला व सिविल लाइन एरिया में तीन मरीज मिले हैं। दो अन्य मरीज घर पर हैं, जिसे अस्पताल नहीं ले जाया गया है। सीएमएचओ बैकुंठपुर के पत्र के अनुसार डेबरीपारा की 14 वर्षीय कुदेशिया बेगम का इलाज भी रायपुर के एक निजी अस्पताल में चल रहा है। जिला स्तरीय रैपिड रिस्पांस टीम जिलों में पेयजल स्रोतों की जांच कर रही है। मरीजों का इलाज प्लाज्मा एक्सचेंज व इम्यूनोग्लोबुलिन से किया जा रहा है। तीन सदस्यीय कमेटी ने अपने अभिमत में बताया है कि यह जीबीएस के इलाज के लिए कारगर है।
नोडल अफसर
महामारी नियंत्रण छग डॉ. खेमराज सोनवानी ने कहा कि बैकुंठपुर जिले में गुलियन बेरी सिंड्रोम के एक साथ काफी केस मिले हैं। मरीजों का इलाज निजी अस्पतालों में चल रहा है। इनमें कुछ की स्थिति गंभीर है। यह बीमारी काफी दुर्लभ है, इसलिए स्वास्थ्य विभाग इसे गंभीरता से ले रहा है। इतने केस बल्क में क्यों आए, इसकी पड़ताल की जा रही है।
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