13 और 14 जून को जारी हुए तबादला आदेशों के तहत स्टांप विभाग में कुल 202 अधिकारियों-कर्मचारियों का तबादला किया गया था। इन आदेशों पर तत्कालीन आईजी स्टांप समीर वर्मा के हस्ताक्षर थे। आरोप है कि इन तबादलों में न तो मेरिट का ध्यान रखा गया और न ही पारदर्शिता बरती गई।
मंत्री जायसवाल के अनुसार, कई ऐसे कर्मचारियों को बड़े जिलों में तैनात कर दिया गया जिनके खिलाफ शिकायतें लंबित थीं। इतना ही नहीं, इंटरमीडिएट पास बाबुओं को रजिस्ट्रार जैसे अहम पदों पर बैठा दिया गया। मंत्री ने आरोप लगाया कि तबादलों की सूची न तो उनसे साझा की गई और न ही कोई चर्चा की गई।
मुख्यमंत्री से की गई लिखित शिकायत
रविंद्र जायसवाल ने इस पूरे मामले को लेकर मुख्यमंत्री को लिखित शिकायत सौंपी जिसमें तबादलों में भारी-भरकम लेन-देन के आरोप भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न केवल सभी तबादलों को निरस्त करने के आदेश दिए, बल्कि इस पूरी प्रक्रिया की गहन जांच के निर्देश भी दिए हैं। इसके साथ ही तबादला आदेश जारी करने वाले आईजी स्टांप समीर वर्मा को उनके पद से हटाकर वेटिंग लिस्ट में डाल दिया गया है।
स्वास्थ्य विभाग भी विवादों में
स्टांप विभाग की तरह ही स्वास्थ्य विभाग में भी तबादलों को लेकर बड़ा विवाद सामने आया है। निदेशक स्वास्थ्य प्रशासन भवानी सिंह खरगौत को भी उनके पद से हटा दिया गया है। इस विभाग में उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक पहले ही स्पष्ट निर्देश दे चुके थे कि तबादला आदेश बिना उनकी अनुमति के जारी न किए जाएं। बावजूद इसके, आदेशों को नजरअंदाज करते हुए तबादले किए गए। नतीजन, पूरे तबादला सत्र को शून्य घोषित कर दिया गया है।
प्रशासनिक पारदर्शिता पर उठे सवाल
लगातार सामने आ रहे इस तरह के मामले यह दिखाते हैं कि उत्तर प्रदेश में शासन-प्रशासन की पारदर्शिता और नियमों के पालन को लेकर गंभीर चूक हो रही है। भले ही मुख्यमंत्री द्वारा तत्काल कार्रवाई की जा रही हो, लेकिन यह घटनाएं दर्शाती हैं कि उच्च अधिकारियों द्वारा की जा रही मनमानी पर लगाम लगाने की ज़रूरत है।