Hola Mohalla 2025: होला-मोहल्ला: सिख वीरता और सांस्कृतिक धरोहर का पर्व
Hola Mohalla Sikh Festival: होला-मोहल्ला सिख समुदाय का एक ऐतिहासिक पर्व है, जिसे गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1701 में शुरू किया था। यह पर्व वीरता, साहस और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। आनंदपुर साहिब में आयोजित इस उत्सव में निहंग सिख घुड़सवारी, तलवारबाजी और गतका का प्रदर्शन करते हैं, जिससे सिख सैन्य परंपरा जीवंत रहती है।
Hola Mohalla Celebration : होला-मोहल्ला सिख समुदाय का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे होली के अगले दिन मनाया जाता है। यह पर्व सिखों में वीरता, साहस और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का प्रतीक है। गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा 1701 में आरंभ किया गया यह उत्सव आज भी आनंदपुर साहिब में विशेष धूमधाम से मनाया जाता है, जहां निहंग सिख अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हैं।
भारत विविध संस्कृतियों और परंपराओं का देश है, जहां प्रत्येक समुदाय अपने विशेष त्योहारों और उत्सवों के माध्यम से अपनी धरोहर को जीवित रखता है। सिख समुदाय का ऐसा ही एक विशिष्ट पर्व है ‘होला-मोहल्ला’, जो होली के अगले दिन मनाया जाता है। यह पर्व सिखों में वीरता, साहस और सामुदायिक भावना को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।
होला-मोहल्ला का इतिहास
होला-मोहल्ला की शुरुआत सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1701 ईस्वी में की थी। उन्होंने सिख समुदाय में सैन्य कौशल और वीरता को प्रोत्साहित करने के लिए इस पर्व की नींव रखी। ‘होला’ शब्द संस्कृत के ‘होलिका’ से लिया गया है, जबकि ‘मोहल्ला’ अरबी शब्द ‘महल्ला’ से, जिसका अर्थ है संगठित जुलूस या जुलूस का स्थान। गुरु जी ने आनंदपुर साहिब के निकट अगमपुर गांव में एक खुले मैदान में संगत को एकत्रित कर इस पर्व की शुरुआत की, जहां सिख योद्धाओं ने अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया।
वीरता का प्रदर्शन: होला-मोहल्ला के दौरान निहंग सिख घुड़सवारी, तलवारबाजी, नेजाबाजी और गतका जैसे युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हैं। यह आत्मरक्षा और आक्रमण की कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
रंगों का उत्सव: होली की तरह, इस पर्व में भी एक-दूसरे पर फूलों और गुलाल की बौछार की जाती है, जो आनंद और उत्साह का प्रतीक है।
नगर कीर्तन: पंज प्यारे नगर कीर्तन का नेतृत्व करते हैं, जिसमें निहंग सिख निशान साहिब लेकर चलते हैं और तलवारों के करतब दिखाते हैं। यह जुलूस चरण गंगा नदी के तट पर समाप्त होता है।
लंगर सेवा: आनंदपुर साहिब में विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है, जहां संगत नि:शुल्क भोजन का आनंद लेती है। यह सिख धर्म की सेवा भावना का प्रतीक है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में होला-मोहल्ला
वर्तमान समय में, होला-मोहल्ला न केवल सिख समुदाय के लिए, बल्कि अन्य समुदायों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया है। आनंदपुर साहिब में आयोजित होने वाला यह उत्सव छह दिनों तक चलता है, जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम, कविताएं, कीर्तन और अन्य धार्मिक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं।
होला-मोहल्ला 2025: विशेष आयोजन
इस वर्ष 14 मार्च 2025 को लखनऊ के ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी यहियागंज में होला-मोहल्ला का आयोजन बड़े श्रद्धा पूर्वक किया जाएगा। 14 मार्च को शाम 7:00 बजे से 11:00 बजे तक और 15 मार्च को प्रातः 5:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक कार्यक्रम आयोजित होंगे। गुरुद्वारा सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि डॉ. गरमीत सिंह के संयोजन में होने वाले इस समागम में विशेष रूप से श्री दरबार साहब श्री अमृतसर से जगतार सिंह, सुरेंद्र सिंह एवं दिल्ली से आनंद बंधु को आमंत्रित किया गया है।
होला-मोहल्ला के प्रति बढ़ती जागरूकता
होला-मोहल्ला के प्रति लोगों की रुचि में पिछले कुछ वर्षों में वृद्धि देखी गई है। लोग इस पर्व के इतिहास, महत्व और आयोजन के बारे में अधिक जानने के लिए ऑनलाइन खोज कर रहे हैं। यह सिख संस्कृति और परंपरा के प्रति बढ़ती जागरूकता का संकेत है।
होला-मोहल्ला सिख समुदाय का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो वीरता, साहस और सांस्कृतिक धरोहर को संजोता है। गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा आरंभ किया गया यह उत्सव आज भी सिखों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। आनंदपुर साहिब में आयोजित होने वाला यह पर्व न केवल सिख समुदाय, बल्कि संपूर्ण समाज के लिए एकता, साहस और सेवा का संदेश देता है।
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