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कौन हैं महंत देव्यागिरि
महंत देव्यागिरि का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उनके अंदर बचपन से ही आध्यात्मिकता और धर्म के प्रति विशेष झुकाव था। उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद संन्यास मार्ग को चुना और गुरु परंपरा के तहत दीक्षा लेकर जूना अखाड़ा से जुड़ीं। उनका मानना है कि “धर्म और भक्ति किसी लिंग पर निर्भर नहीं होते, बल्कि यह एक व्यक्ति की आस्था और समर्पण पर निर्भर करता है।” इस विचारधारा के साथ उन्होंने संत परंपरा में कदम रखा और आज वह महिलाओं के लिए आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं।लखनऊ में शाही अंदाज में होगी होली! 50 हजारी पिचकारी और 70 हजारी बाल्टी बनी आकर्षण का केंद्र
कैसे बनीं पहली महिला महंत
महंत देव्यागिरि को जब जूना अखाड़ा के नागा संन्यासियों ने महंत पद के लिए चुना, तो यह न केवल उनके लिए बल्कि पूरे संत समाज के लिए ऐतिहासिक क्षण था। आमतौर पर जूना अखाड़ा में पुरुष संतों का वर्चस्व रहा है, लेकिन महंत देव्यागिरि ने इस परंपरा को तोड़ते हुए महिलाओं को भी संत समाज में विशेष स्थान दिलाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया। महंत पद ग्रहण करने के बाद, उन्होंने समाज सेवा और आध्यात्मिक प्रचार-प्रसार को अपनी प्राथमिकता बनाया। आज वे न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का नेतृत्व करती हैं, बल्कि शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण जैसे सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं।
महंत देव्यागिरि की पहचान और योगदान
1. धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में योगदानमहंत देव्यागिरि विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, प्रवचनों और आध्यात्मिक कार्यक्रमों का नेतृत्व करती हैं। उनका मुख्य उद्देश्य है युवा पीढ़ी को धर्म और भारतीय संस्कृति से जोड़ना।
वह महिलाओं को संत परंपरा से जोड़ने और उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती हैं। उनका मानना है कि धर्म और अध्यात्म में महिलाओं की भूमिका पुरुषों के बराबर होनी चाहिए।
महंत देववयगिरि कई सामाजिक संगठनों से जुड़ी हुई हैं, जो गरीब बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का कार्य करते हैं। वह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाती हैं।
धार्मिक कार्यों के साथ-साथ, महंत देव्यागिरि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी विशेष अभियान चलाती हैं। वे पेड़ लगाने, गंगा सफाई अभियान और प्लास्टिक मुक्त समाज के लिए कार्यरत हैं।
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लखनऊ के इस मंदिर से जुड़ीं महंत देव्या गिरि
महंत देव्यागिरि लखनऊ के प्रसिद्ध श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा मंदिर से जुड़ी हुई हैं। यह मंदिर केवल पूजा-अर्चना का स्थान ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता और समाजसेवा का केंद्र भी बन चुका है। यहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त दर्शन के लिए आते हैं और महंत देव्यागिरि के प्रवचनों को सुनकर प्रेरित होते हैं। इस मंदिर में सामूहिक भंडारे, निःशुल्क चिकित्सा शिविर और गरीबों के लिए सहायता कार्यक्रम नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं।
महंत देव्यागिरि की चुनौतियां और संघर्ष
हालांकि महंत देव्यागिरि ने आध्यात्मिक दुनिया में अपनी अलग पहचान बना ली है, लेकिन उनका सफर आसान नहीं था। उन्हें पुरुष संतों के विरोध का सामना करना पड़ा।कई बार समाज में महिलाओं के संत बनने को लेकर संदेह जताया गया।लेकिन अपनी लगन, समर्पण और तपस्या के बल पर उन्होंने सभी बाधाओं को पार किया और आज वे एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बन चुकी हैं।