हेमंत दिवटे ने सोशल मीडिया पर यह घोषणा करते हुए कहा, “हिंदी भाषा को तीसरी भाषा के रूप में थोपने के निर्णय के विरोध स्वरूप, मैं ‘पॅरानोया’ कविता संग्रह के लिए प्राप्त महाराष्ट्र शासन का पुरस्कार और उसकी नकद राशि लौटा रहा हूं। यदि सरकार यह निर्णय वापस लेती है, तो मैं भी अपना फैसला वापस लूंगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि इतनी कम उम्र में बच्चों को औपचारिक रूप से हिंदी पढ़ाना जरूरी नहीं है। दिवटे ने कहा, “इस उम्र में बच्चे अभी मराठी सीखना शुरू कर रहे होते हैं, ऐसे में हिंदी भी साथ में पढ़ाने से दोनों भाषाओं की समानता के कारण उनमें भ्रम की स्थिति बन सकती है। इसके बजाय सरकार कौशल, मूल्य शिक्षा और व्यक्तित्व विकास पर केंद्रित विषयों को शुरू करने पर विचार कर सकती है, जो इन बच्चों के लिए अधिक फायदेमंद होगा।”
बता दें की महाराष्ट्र कि फडणवीस सरकार ने अपने पुराने निर्णय से पीछे हटते हुए राज्य के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी पढ़ाने से संबंधित पुराने आदेश से ‘अनिवार्य’ शब्द को हटाया और हाल ही में संशोधित आदेश जारी किया। लेकिन इसमें भी हिंदी के अलावा वैकल्पिक भाषाओं के चयन से जुड़े शर्त को लेकर फिर विवाद खड़ा हो गया। इस बीच, हेमंत दिवटे के इस कदम ने राज्य में हिंदी भाषा पढ़ाने को लेकर चल रहे विवाद को और हवा दे दी है।
हाल ही में हिंदी विरोध पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था, हम अंग्रेजी का जितना सम्मान करते हैं, उतना ही भारतीय भाषाओं का भी करना चाहिए। भारतीय भाषाएं अंग्रेजी से बेहतर हैं। हमने मराठी भाषा को हर स्कूल में अनिवार्य किया है, लेकिन हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया गया है और छात्रों को किसी भी भारतीय भाषा को तीसरी भाषा के रूप में चुनने की स्वतंत्रता दी गई है।