क्या है मामला?
बीड जिले के होल गांव की रहने वाली बालिका घुगे नामक महिला को प्रसव पीड़ा होने पर अंबाजोगाई के स्वामी रामानंद तीर्थ अस्पताल में भर्ती किया गया था। प्रसूति के दौरान महिला की गर्भाशय थैली फट गई, जिससे डॉक्टरों ने गर्भपात (Spontaneous Abortion) का निर्णय लिया। अस्पताल के डॉक्टरों के अनुसार, जन्म लेने वाले शिशु ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, इसलिए उसे मृत मानकर परिजनों को सौंप दिया गया।
दादी की ममता ने बचाई जान!
परिजन नवजात को एक पॉलिथीन बैग में रखकर बाइक से लगभग 17 किमी दूर अपने गांव ले गए। जब अंतिम संस्कार की तैयारी की जा रही थी। तभी शिशु की दादी ने मृत पोते का चेहरा देखने की जिद की और जैसे ही कपड़ा हटाया गया नवजात रोने लगा। जिसके बाद परिजनों में ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। सभी तुरंत उसे लेकर अस्पताल दौड़े, जहां उसे आईसीयू में भर्ती कराया गया। बच्चे का इलाज चल रहा है और उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है।
रिपोर्ट के आधार पर होगी कार्रवाई
इस घटना ने मेडिकल व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना के बाद अस्पताल प्रशासन ने दो जांच समितियां गठित की हैं। अस्पताल के प्रभारी डीन डॉ. कचरे ने बताया कि, समितियां इस मामले की विस्तृत जांच कर रिपोर्ट देंगी, उसके बाद उचित कार्रवाई की जाएगी। अभी तक परिजनों की ओर से कोई लिखित शिकायत नहीं मिली है।”
लापरवाही पर उठे सवाल
एक बालरोग विशेषज्ञ ने बताया कि आमतौर पर यदि कोई नवजात समय से पूर्व (Premature) जन्मा हो और प्रतिक्रिया न दे रहा हो, तो कम से कम 7–8 प्रकार की मेडिकल जांच करना जरूरी होता है। इसके बाद भी उसे कम से कम 50 मिनट तक निगरानी में रखना चाहिए, तभी मृत घोषित किया जाना चाहिए। इस गंभीर लापरवाही ने अस्पताल की कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। इस मामले के सामने आने के बाद स्थानीय लोगों में आक्रोश है। लोगों ने मांग की है कि दोषी डॉक्टरों पर कड़ी कार्रवाई हो और अस्पताल की व्यवस्थाओं में सुधार किया जाए ताकि भविष्य में ऐसा कोई दर्दनाक घटना न हो।