बहुउद्देशीय चिकित्सालय में गुरुवार को फरडौद से पशुपालक एक बीमार पाण्डे को लेकर आया था। जांच के दौरान बताया कि इसका ऑपरेशन होगा। आपरेशन से पूर्व पशुपालक से सर्जिकल ब्लेड, सर्जिकल ग्लोव्स एवं फोलिस कैथेटर आदि सामान बाहर से खरीद कर लाने के लिए कहा गया। इस पर पशुपालक की ओर से पूछा गया कि हॉस्पिटल में यह सामान नहीं है तो जवाब मिला कि आपरेशन कराना है तो फिर यह सामान लेकर आना पड़ेगा। इसके बाद मजबूरी में वह पशुपालक यह सारा सामान बाहर से खरीदकर ले आया। तब जाकर उसके बीमार पशु का ऑपरेशन हुआ।
…तो फिर नहीं होगा क्या ऑपरेशन…!
जिला स्तरीय इस हॉस्टिल में नागौर के अलावा आसपास के सीमावर्ती जिलों से भी शल्य प्रक्रिया वाले पशुओं को लेकर पशुपालक आ जाते हैं। माह भर में इनकी संख्या दर्जन भर का आंकड़ा पार कर जाती है। इससे साफ है कि सभी पशुपालक बाहर से सामान खरीद कर ला रहे हैं, तब जाकर ऑपरेशन हो रहा है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि यदि शल्य प्रक्रिया के आवश्यक सामानों की सूची में शामिल सामान खरीदने के लिए पशुपालकों में किसी के पास पैसे नहीं हैं तो फिर उस पशु का ऑपरेशन कैसे होगा। इस संबंध में अधिकारियों से बातचीत करने की कोशिश की तो इस सवाल से बचते नजर आए।
अनुमति लेनी पड़ती है…
इस संबंध में पॉली क्लिनिक प्रभारी एवं उपनिदेशक नरेन्द्र चौधरी से बातचीत हुई तो बताया कि शल्य प्रक्रिया के सामान हो या फिर दवा की खरीद, दोनों के लिए स्वीकृति लेनी पड़ती है। इस बाबत सप्ताह भर पूर्व ही संयुक्त निदेशक डॉ. महेश कुमार मीणा को लिखित में पत्र दिया जा चुका है। स्वीकृति मिलने पर खरीद हो जाएगी।
इनका कहना है…
बहुउद्देशीय चिकित्सालय के पास ही 50 हजार से लेकर एक लाख तक का इमरजेंसी बजट होता है। इससे खरीद की जा सकती है। बाहर से पशुपालक सामान खरीद कर ला रहे तो इसे देखवा लिया जाएगा। सरकार की ओर से दिया यह बजट अपर्याप्त होने की स्थिति में बढ़वाया भी जा सकता है। यह जिम्मेदारी तो बहुउद्देशीय हॉस्पिटल की होती है कि वह सारी व्यवस्थाएं पहले से कर के रखें। ताकि पशुपालक परेशान न हों।
डॉ. महेश कुमार मीणा, संयुक्त निदेशक पशुपालन नागौर