पत्र वायरल होने के बाद डॉ. ज्योति मिर्धा ने मीडिया को दिए एक बयान में भले ही किसी का नाम न लिया हो, लेकिन कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर पर चिट्ठी लीक कराने के खुलकर आरोप लगाए। इसके बाद खींवसर और उनके बेटे की ओर से प्रतिक्रियाएं आने लगीं, जिससे मामला तूल पकड़ गया।
विभाग किसी की जागीर नहीं- मिर्धा
वहीं, ज्योति मिर्धा ने अब सीधे शब्दों में कहा कि जब मैंने नाम नहीं लिया, फिर भी मंत्रीजी और उनके सुपुत्र इतने भड़क गए, तो जाहिर है कि चोर की दाढ़ी में तिनका है। उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कि धृतराष्ट्र की समस्या ये नहीं थी कि वो अंधे थे, समस्या ये थी कि वो पुत्र मोह में अंधे थे। इस दौरान ज्योति मिर्धा ने मंत्री खींवसर को याद दिलाया कि यह 2025 है, न कि किसी जागीरदारी। उन्होंने कहा कि मंत्री का काम जनसेवा है, न कि व्यक्तिगत एजेंडा चलाना। उन्होंने कहा कि ये मंत्रालय किसी की निजी संपत्ति नहीं है। पार्टी ने उन्हें जिम्मेदारी दी है ताकि जनता के काम हो सकें, न कि पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो।
उन्होंने यह भी कहा कि विधायक की चिट्ठी वायरल करने की रोचक कहानी है और उनके पास सारे सबूत भी हैं, जिसे वह समय आने पर उजागर करेंगी। ज्योति मिर्धा ने स्पष्ट किया कि उन्होंने अपनी बात पार्टी फोरम पर रख दी है और जहां ज़रूरत थी, वहां सबूत भी दे दिए हैं।
क्या है पत्र वायरल का पूरा मामला?
बताते चलें कि इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब खींवसर से भाजपा विधायक रेवंतराम डांगा ने मुख्यमंत्री को एक गोपनीय पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने स्थानीय प्रशासन पर विपक्षी नेताओं के पक्ष में काम करने और उनकी उपेक्षा का आरोप लगाया था। इसके बाद यह पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। ज्योति मिर्धा ने बिना नाम लिए पत्र लीक कराने के लिए खींवसर गुट पर इशारा किया, जिससे मंत्री पक्ष नाराज हुआ। फिर मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने मिर्धा के बयान पर नाराजगी जताई और कहा कि अगर उनके खिलाफ कोई आरोप है तो सबूत पेश करें। इसके बाद से दोनों नेताओं के बीच बयानबाजी को दौरा लगातार जारी है। बता दें, इस पूरे घटनाक्रम से भाजपा के भीतर गुटबाजी का संकेत भी मिल रहा है।