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नागौर

गलियों में छुपा ‘आग का खतरा’, जिम्मेदार खामोश!

नावां शहर (नागौर). अजमेर में हाल ही में हुए भयावह अग्निकांड ने केवल उस शहर की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की शहरी व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है।

नागौरJun 03, 2025 / 01:43 pm

Ravindra Mishra

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नावां की वीआईपी कॉलोनी की गलियों को बनाया गया कचरा पात्र

नावां शहर के कई इलाकों में दमकल पहुंचने के रास्ते बंद, हादसा हुआ तो कैसे संभालेंगे, वीआईपी कॉलोनी की 8 गलियों में अतिक्रमण

नावां शहर (नागौर). अजमेर में हाल ही में हुए भयावह अग्निकांड ने केवल उस शहर की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की शहरी व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है। इसका असर नमक नगरी नावां पर भी साफ नजर आता है, जहां की तंग गलियां और बेतरतीब बहुमंजिला इमारतें किसी हादसे को दावत देती दिख रही हैं। सवाल यह है कि यदि ऐसी गलियों में कोई हादसा हो जाए, तो दमकल गाड़ियों का पहुंचना नामुमकिन होगा।
नावां के कई क्षेत्रों में बिना सोचे-समझे मल्टीस्टोरी इमारतें खड़ी कर दी गईं हैं, जहां न तो फायर सेफ्टी सिस्टम हैं और न ही कोई आपातकालीन व्यवस्था। चौंकाने वाली बात यह है कि ऐसे भवनों को स्वीकृति आखिर किस आधार पर दी गई? ऐसा ही नहीं नगर की न्यू कॉलोनी जिसे आदर्श नगर भी कहा जाता है। यह सबसे वीआईपी कॉलोनियों में से एक है। जिसके धरातल के हालात ऐसे है कि इसमें 8 ऐसी तंग गलियां हैं जहां शुद्ध रूप से अतिक्रमण दिखाई देता है। या यूं कहे कि गलियों पर कब्जा किया जा चुका है तथा कुछ में कचरे का अंबार है। इससे यह प्रतीत होता है कि जिम्मेदारों की यहां पर मौन स्वीकृति बनी है।
दमकल के रास्ते बंद, खतरा और लापरवाही साथ-साथ

एचडीएफसी और एसबीआई जैसे बड़े बैंकों के आसपास के क्षेत्रों में भी यही हालात हैं। गलियां इतनी तंग हैं कि अगर आग लग जाए, तो दमकल वहां तक पहुंच ही नहीं सकती। इसके बावजूद संबंधित विभागों की ओर से कभी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। हैरानी की बात यह है कि ऐसी इमारतों को एनओसी जारी कर दी जाती है, जो नियमों की खुली अनदेखी है। इससे नमक नगरी में भविष्य की चुनौती बढ़ गई है।
कचरा, अतिक्रमण और निर्माण की मनमानी

शहर की तंग गलियों में कुछ लोगों ने 6 फीट की गली को घटाकर 1-2 फीट कर डाला है। कई गलियों को तो कचरे का डंपिंग यार्ड बना दिया गया है। कहीं पर दरवाजे लगा दिए गए हैं, तो कहीं छज्जे बाहर निकालकर गलियों को और संकरा कर दिया गया है। यह पूरा मामला सिर्फ लापरवाही का नहीं, बल्कि जिम्मेदारों की ‘मौनस्वीकृति’ का प्रतीक बन गया है। जब-जब कोई हादसा होता है, तब-तक खानापूर्ति होती है और फिर सबकुछ जस का तस। अब बड़ा सवाल यह है: क्या प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है? जिम्मेदार अब भी जाग जाएं, वरना अगला अग्निकांड नावां की इन गलियों में दस्तक दे सकता है!

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