कर्म का कोई बंधन नहीं होता है, चिंतन-मनन करना मत रोको और नई जानकारियां प्राप्त करो
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लाडनूं . राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय को आधुनिक गुरुकुल की संज्ञा देते हुए कहा कि यह संस्थान नैतिक व चारित्रिक मूल्यों के प्रति समर्पित है। यहां मानवीय मूल्यों के साथ बौद्धिक क्षमता के विकास के लिए कार्य किया जा रहा है
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राज्यपाल विश्वविद्यालय के 35वें स्थापना दिवस पर गुरुवार को सम्पोषणम भवन में आयोजित समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। राज्यपाल ने भारतीय ज्ञान परम्परा और प्राचीन भारतीय शिक्षा के गौरवशाली इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि प्राचीन समय में चरक, सुश्रुत, गार्गी, मैत्रेयी आदि ऋषियों व विदुषियों के लिखे ग्रंथ आज लोगों का मार्गदर्शन करते हैं।
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लाडनूं . राज्यपाल का सम्मान करते कुलपति प्रो. बच्छराज दुग्गड़ व संस्थान के अध्यक्ष अमरचंद लूंकड़ तथा उपस्थित गणमान्यजन।
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आध्यात्मिक शिक्षा भी जरूरी कार्यक्रम में मुनि जयकुमार ने कहा कि जब तक नैतिक, धार्मिक व आध्यात्मिक शिक्षा नहीं ली जाती, तब तक शिक्षा पूर्ण नहीं कहलाती है। मुनि विजय कुमार ने संस्थान की ओर से 35वें वर्ष में किए गए विकास को बेहतरीन बताया
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कुलपति प्रो. बच्छराज दुग्गड़ ने विश्वविद्यालय की विकास यात्रा प्रस्तुत की। उन्होंने राज्यपाल का शॉल, स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया। विशिष्ट अतिथि संस्थान के अध्यक्ष अमरचंद लूंकड़ का भी सम्मान किया गया। इस मौके पर राज्यपाल ने जैविभा चिकित्सालय का शिलान्यास व नवीन कुलपति कक्ष व सभाकक्ष का उद्घाटन किया।
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कुलसचिव प्रो. बीएल जैन ने आभार ज्ञापित किया। समारोह संस्था के पूर्व अध्यक्ष धर्मचंद लूंकड़, संरक्षक भागचंद बरड़िया, योगक्षेम प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष प्रमोद बैद सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।
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राज्यपाल ने भारतीय ज्ञान परम्परा और प्राचीन भारतीय शिक्षा के गौरवशाली इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि प्राचीन समय में चरक, सुश्रुत, गार्गी, मैत्रेयी आदि ऋषियों व विदुषियों के लिखे ग्रंथ आज लोगों का मार्गदर्शन करते हैं। उन्होंने महर्षि भारद्वाज के विमान निर्माण विधि के ग्रंथ की चर्चा करते हुए बताया कि इस ग्रंथ का शोधन कर 1895 में यहां विमान बना कर उड़ाया गया था और वह 1500 फीट की ऊंचाई तक उड़ा और सफलता पूर्वक वापस लौटा भी। इस आविष्कार को भारत में दबा कर रखा गया और इसके 8 साल बाद राईट बंधुओं ने वायुयान बनाया। हमारे देश में हजारों साल पहले पूरा ज्ञान-विज्ञान लिखा जा चुका है
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आचार्य तुलसी ने चलाया अणुव्रत आंदोलनराज्यपाल ने कहा कि लाडनूं आचार्य तुलसी की जन्मभूमि है। यहां उनके आदर्शों और ज्ञान को आत्मसात् करने की भावना को बल दिया जा रहा है। आचार्य तुलसी ने चरित्र निर्माण के लिए देश में अणुव्रत आंदोलन शुरू किया और लाखों किलोमीटर की पदयात्राएं की। उन्होंने नशामुक्ति को महत्व दिया। राज्यपाल ने विद्यार्थियों से कहा कि ज्ञान अथाह समुद्र की तरह है, इसमें से जितना भी ग्रहण कर सको, अवश्य करो। उन्होंने सोहनलाल द्विवेदी की कविता कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती सुनाकर सभी को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि कर्म का कोई बंधन नहीं होता है, सोचना, चिंतन, मनन करना रोको मत। विद्या को निरन्तर बांटना आवश्यक है। उन्होंने शिक्षकों, प्राध्यापकों, प्राचार्यों को नई जानकारियां प्राप्त करने और विद्यार्थियों को देने की बात कही।