बाघ एक गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजाति हैं, और हमारी तरफ से थोड़ी-सी भी लापरवाही या उपेक्षा उनकी संख्या में तेजी से गिरावट का कारण बन सकती है। वन्यजीवों की निगरानी बाघों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और यह उन्हें शिकारियों से बचाने में भी मदद करती है। एरियल ड्रोन, इंफ्रा-रेड कैमरे, आरएफआईडी टैग्स, जीपीएस जियो-लोकेशन, सैटेलाइट सर्वेक्षण आदि पहले से ही दुनिया भर में वन्यजीव संरक्षण के लिए निगरानी के उपकरण के रूप में उपयोग किए जा रहे हैं। यदि हम इन मौजूदा तरीकों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इमेज प्रोसेसिंग और प्रेडिक्टिव एनालिसिस जैसी तकनीकों के साथ जोड़ते हैं, तो हम निगरानी, प्रवर्तन में मानकीकरण कर सकते हैं और कार्यक्षमता को बढ़ा सकते हैं।
डीप लर्निंग मॉडल्स को एरियल ड्रोन, सैटेलाइट्स, स्थल आधारित कैमरों और नाइट विज़न कैमरों के साथ भी जोड़ा जा सकता है, जो लगातार क्लाउड पर जानकारी ट्रांसफर करेंगे, जहां उन्नत AI मॉडल्स इसे प्रोसेस करेंगे और पर्यावरण और वन विभाग के नेतृत्व को लगातार निर्णय लेने में मददगार साबित होंगे।
इस तरह की प्रौद्योगिकी, जो बड़े पैमाने पर डेटा मापने और एकत्र करने का काम करती है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित मॉडलों का उपयोग करती है, दिल्ली और उत्तरी भारत के अन्य हिस्सों में विशेष रूप से सर्दियों में प्रदूषण की समस्या को बेहतर ढंग से समझने और हल करने में भी मदद कर सकती है। सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए और हमारे विश्व स्तरीय आइटी कंपनियों और IITs को इसमें भागीदार बनाना चाहिए ताकि इसे एक राष्ट्रीय मिशन बनाया जा सके। जैसे विभिन्न नासा कार्यक्रमों से तकनीकी स्पिन-ऑफ हुए थे, वैसे ही इस प्रयास से देश की तकनीकी प्रगति हो सकती है और भारत को एक वैश्विक शक्ति बना सकती है।