लोगों ने मंदिर को किया ‘शुद्ध’
लेकिन जैसे ही कन्हैया कुमार मंदिर से विदा हुए, एक चौंकाने वाला दृश्य सामने आया। कुछ स्थानीय लोगों ने तुरंत मंदिर परिसर में पानी डालकर उसे धोना शुरू कर दिया और फिर गंगाजल का छिड़काव कर मंदिर को ‘शुद्ध’ करने की प्रक्रिया शुरू की। इस घटना ने सभी को हैरान कर दिया। जब इस बारे में जानकारी ली गई तो पता चला कि ऐसा करने वाले लोगों का मानना था कि कन्हैया कुमार की मौजूदगी से मंदिर ‘अपवित्र’ हो गया था। उनका कहना था, “कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का दाग अभी धुला नहीं है। उन्होंने पहले जो विवादित बयान दिए, उससे उनकी छवि ऐसी बन गई है कि उनके मंदिर में आने से इस पवित्र स्थान की गरिमा को ठेस पहुंची है। इसलिए हमें इसे गंगाजल से शुद्ध करना पड़ा।” यह घटना उस विवाद से जुड़ी है, जो कन्हैया कुमार के जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष रहते हुए 2016 में शुरू हुआ था, जब उन पर देशविरोधी नारे लगाने का आरोप लगा था। हालांकि, कन्हैया ने हमेशा इन आरोपों का खंडन किया है, लेकिन यह मुद्दा उनकी सार्वजनिक छवि से आज तक पीछा नहीं छोड़ रहा। बनगांव के इस मंदिर में उनके प्रवेश और उसके बाद हुई ‘शुद्धिकरण’ की प्रक्रिया ने एक बार फिर इस पुराने विवाद को हवा दे दी। लोगों का कहना था कि भगवती स्थान उनकी आस्था का केंद्र है और वे इसे किसी भी तरह के विवाद से दूर रखना चाहते हैं।
छिड़ गया नया विवाद
इस घटना ने न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राजनीतिक हलकों में भी बहस छेड़ दी है। जहां कन्हैया कुमार और उनके समर्थक इसे धार्मिक आस्था के नाम पर राजनीति करार दे रहे हैं, वहीं उनके विरोधी इसे उनकी कथित देशविरोधी छवि से जोड़कर देख रहे हैं। कन्हैया ने अपने संबोधन में बिहार के युवाओं को नौकरी और बेहतर भविष्य का वादा किया था, लेकिन मंदिर की धुलाई ने उनकी इस यात्रा को एक अलग ही रंग दे दिया। इस पूरे प्रकरण ने ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ पदयात्रा के मूल उद्देश्य को भी कुछ हद तक पीछे छोड़ दिया और चर्चा का केंद्र यह बन गया कि क्या वास्तव में कन्हैया की मौजूदगी से मंदिर की पवित्रता प्रभावित हुई या यह केवल एक राजनीतिक नाटक था। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह घटना कन्हैया की यात्रा और उनकी राजनीतिक छवि पर किस तरह असर डालती है।