पशुपति पारस की महागठबंधन में एंट्री की चर्चा तेज
सबसे बड़ा घटनाक्रम चिराग पासवान के चाचा और RLJP प्रमुख पशुपति कुमार पारस को लेकर सामने आया है। हाल ही में 3 जुलाई को पटना में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पशुपति पारस ने एनडीए से नाता तोड़ने की घोषणा कर दी। इसके अगले ही दिन तेजस्वी यादव ने पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की जयंती के अवसर पर पशुपति पारस के घर जाकर मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद से अटकलें तेज हैं कि पारस जल्द महागठबंधन में शामिल हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो एनडीए के वोटबैंक में सीधी सेंध लगेगी, खासकर पासवान वोट बैंक में। चिराग पासवान ने पहले ही सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर एनडीए की टेंशन बढ़ा दी थी, अब चाचा-भतीजा की इस सियासी खींचतान में महागठबंधन की एंट्री से चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल सकता है।
JMM की एंट्री से झारखंड सीमा से लगे क्षेत्रों में मजबूत होगा महागठबंधन
तेजस्वी यादव का दूसरा बड़ा दांव झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) को महागठबंधन में शामिल करना है। रिपोर्ट्स के अनुसार, हेमंत सोरेन की पार्टी JMM भी महागठबंधन का हिस्सा बनने जा रही है। इससे झारखंड सीमा से लगे बिहार के जिलों में महागठबंधन को सामाजिक आधार और संगठनात्मक मजबूती मिलेगी। झारखंड में आदिवासी और पिछड़े वर्ग का अच्छा खासा प्रभाव है, और इनका असर बिहार के सीमावर्ती इलाकों में भी पड़ता है। ऐसे में JMM की एंट्री महागठबंधन की स्थिति मजबूत कर सकती है।
जातीय और सामाजिक समीकरण साधने में जुटे तेजस्वी
तेजस्वी यादव का पूरा फोकस अलग-अलग जातीय और सामाजिक समीकरणों को साधने पर है। उन्होंने महागठबंधन में समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने की नीति पर काम शुरू किया है, ताकि बीजेपी और जेडीयू के मजबूत वोटबैंकों में सेंध लगाई जा सके। तेजस्वी लगातार युवा, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय को जोड़ने में जुटे हुए हैं।
नीतीश और बीजेपी के लिए बढ़ सकती हैं मुश्किलें
अगर पशुपति पारस महागठबंधन में शामिल होते हैं, तो एनडीए और बीजेपी के लिए चुनौती बढ़ सकती है। चिराग पासवान और एनडीए की खटपट पहले से बनी हुई है, और पारस की संभावित एंट्री से लोजपा का वोट बैंक विभाजित हो सकता है। साथ ही, जेडीयू को भी सीट शेयरिंग में दिक्कत आ सकती है। नीतीश कुमार ने बिहार की सत्ता में खुद को बनाए रखने के लिए बीजेपी का दामन थाम रखा है, लेकिन महागठबंधन के विस्तार से सीटों पर सीधी टक्कर मिलने की संभावना बढ़ जाएगी। प्रशांत किशोर भी बन सकते हैं चुनौती
इस बीच, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी बिहार में सक्रिय हो गए हैं। अगर वह भी चुनावी मैदान में उतरते हैं, तो मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है। उनकी जनसुराज यात्रा ने भी बिहार में अच्छा खासा ग्राउंड बनाया है, जिससे एनडीए और महागठबंधन दोनों के समीकरण प्रभावित हो सकते हैं।
आसान नहीं होगी एनडीए की राह
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब बेहद दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुका है। महागठबंधन का विस्तार, JMM और पारस की संभावित एंट्री, जातीय समीकरणों का पुनर्गठन और प्रशांत किशोर की सक्रियता ने एनडीए के लिए राह मुश्किल कर दी है। आने वाले समय में सीट बंटवारे और गठबंधन की राजनीति पर चुनाव की तस्वीर और साफ होगी। लेकिन इतना तय है कि इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव एनडीए के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं होगा।